पारो शैवलिनी, चित्तरंजन। 1954 से पार्श्वगायिका सुमन कल्याणपुर ने हिंदी सिनेमा जगत में अपना कैरियर शुरू किया था। 34 साल तक लगातार हिन्दी सिनेमा को अपनी आवाज़ में गीत सुनाती रही मगर संगीत प्रेमियों के लिए वो हमेशा पहेली बनी रही कि-“कौन गा रही है? लता तो नहीं।” मगर किसी भी संगीत प्रेमी ने, यहां तक कि किसी फिल्मी हस्ती ने भी यह सवाल नहीं उठाया कि सुमन को कभी फिल्मफेयर अवार्ड क्यों नहीं मिला? किसी फिल्मी पत्रकार को भी यह जानने की फुरसत नहीं मिली कि सुमन कल्याणपुर अपने फिल्मी कॅरियर से खुश हैं या नहीं?
सुमन कल्याणपुर के इस दर्द को समझा था गीतकार योगेश और संगीतकार रोबिन बनर्जी ने। सुमन और संगीतकार रोबिन बनर्जी का साथ 1958 में प्रदर्शित रोबिन की पहली फिल्म वजीरे-आजम से लेकर 1971 में प्रदर्शित रोबिन की अंतिम हिंदी फिल्म राज़ की बात तक रहा। सुमन कल्याणपुर की आवाज़ के बिना रोबिन बनर्जी की फिल्म अधुरी थी। गीतकार योगेश की फिल्मी पहचान भी सुमन कल्याणपुर के गाये गीतों से ही हुआ था जब संगीतकार रोबिन बनर्जी ने फिल्म सखी (1962) में पहली बार योगेश को मौका दिया था। योगेश जी का पहला गाना जो रोबिन बनर्जी ने रिकॉर्ड किया उसे सुमन ने पार्श्वगायक मन्ना डे के साथ गाया था। बोल थे-” तुम जो आओ तो प्यार आ जाये, जिन्दगी में बहार आ जाये।”
गीतकार योगेश ने खाकसार को बताया था कि हालांकि सुमन ने कभी खुलकर इस बात का विरोध नहीं किया। लेकिन अंदर से वो टूटी हुई जरूर थी। योगेश दा ने बताया था, फिल्मों में ये पुरस्कार वगैरह पाने के लिए पैरवी की जरूरत पड़ती है जो ना तो कभी सुमन ने किया, नाही मैंने किया। रोबिन जी ने तो किया ही नहीं। इसका इससे बेहतर उदाहरण और क्या होगा कि लता जी के रहते हुए शारदा को फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। बता दूं , गीतकार योगेश को भी कभी कोई पुरस्कार नहीं मिला। यही कारण रहा कि 1954 से शेख मुख्तार की फिल्म मंगू से अपना कैरियर शुरू करके 1988 में मात्र 34 साल के कैरियर को, जब वो बेहतर परफोर्मेंस कर रही थी, अलविदा कह दिया सुमन कल्याणपुर ने।