विश्व धरोहर दिवस पर विशेष!

विनय सिंह बैस, नई दिल्ली। क़ुतुब परिसर!! कुतुब परिसर दक्षिणी दिल्ली के महरौली नामक स्थान पर स्थित है। यह परिसर वर्तमान में जिस स्थान पर है, वह पहले कभी दिल्ली के अंतिम हिंदू शासक पृथ्वीराज चौहान की राजधानी लालकोट हुआ करती थी, जिसमें किला राय पिथौरा तथा 27 हिंदू तथा जैन मंदिर शामिल थे। कुतुब परिसर में मुख्यतः पांच स्मारक शामिल हैं; 1. कुव्वत – उल इस्लाम-मस्जिद, 2. अला-ई मीनार, 3. अला-ई -दरवाजा, 4. लौह स्तंभ, 5. कुतुब मीनार।

आइये विस्तार से इन पांचों स्मारकों के बारे में जानें…
1. कुव्वत-उल- इस्लाम मस्जिद : “कुव्वत-उल- इस्लाम’ का शाब्दिक अर्थ “इस्लाम की ताकत” है। इस मस्जिद का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1192 में शुरू कराया था। बाद में अल्तमस ने 1230 में और अलाउद्दीन खिलजी ने 1351 में इसका विस्तार कराया। इसकी छत और स्तंभ भारतीय शैली के है जबकि बुर्ज इस्लामिक शैली के। इसी आधार पर सेक्युलर इतिहासकार इसे हिंदू और इस्लामिक कला का अनूठा संगम कहते हैं। लेकिन सत्य यह है कि कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद 27 हिंदू और जैन मंदिरों को ध्वस्त करके उनके अवशेषों से बनाई गई है।

2.अला-ई-मीनार : इस मीनार का निर्माण अलाउद्दीन खिलजी ने शुरू कराया था। इसकी पहली मंजिल का ही निर्माण हो पाया, जिसकी ऊंचाई 24.5 मीटर है। हालांकि योजना के अनुसार इस मीनार की ऊंचाई इससे दोगुनी होनी थी लेकिन किन्ही कारणों से इसे एक मंजिल बनाकर ही अधूरा छोड़ दिया गया।

3. अला-ई दरवाजा : यह दरवाजा कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के दक्षिणी भाग में स्थित है। इसका निर्माण अलाउद्दीन खिलजी ने सन 1311 में कराया था। ‘अला-ई-दरवाजा’ लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से निर्मित है। इसका निर्माण भारत मे पहली बार पूर्ण इस्लामी स्थापत्य शैली में किया गया है। यह भारत में संपूर्ण मेहराब और गुंबदों का आदर्श उदाहरण है । अला-ई दरवाजा प्रारंभिक तुर्की कला का सर्वश्रेष्ठ और अनूठा प्रतीक भी माना जाता है।

4. लौह स्तंभ (गरुण स्तंभ) : इस ऐतिहासिक स्तंभ का निर्माण चंद्रगुप्त विक्रमादित्य (375-413) ने कराया था। यह लौह स्तंभ 98% लोहे से बना है। 1600 वर्ष बीत जाने तथा निरंतर धूप-वर्षा सहने के बावजूद भी इसमें आज तक जंग नहीं लगा है। प्राचीन भारत के धातु विज्ञान का यह अद्भुत उदाहरण है। यह स्तंभ पहले हिंदू और जैन मंदिर परिसर का ही भाग था।

 

5. कुतुब मीनार : कुतुब का अरबी भाषा में अर्थ ‘पोल’ या ‘धुरी’ होता है। कुतुब मीनार का निर्माण मोहम्मद गौरी के जनरल तथा गुलाम वंश के पहले शासक कुतुबुद्दीन ऐबक ने अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान पर विजय के उपलक्ष्य में करवाया था। इस मीनार का वास्तुशिल्प पश्चिमी अफगानिस्तान में स्थित जाम मीनार से काफी हद तक प्रभावित है। इस मीनार का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1193 में शुरू कराया ,लेकिन वह केवल इसका आधार ही बनवा सका। उसकी मृत्यु के पश्चात उसके दामाद और गुलाम वंश के अगले शासक इल्तुतमिश (1211-1236) ने इसकी तीन मंजिलों का निर्माण कराया। शेष दो मंजिलों का निर्माण फिरोज शाह तुगलक ने 1368 में पूरा कराया।

कुतुबमीनार की ऊंचाई 72.5 मीटर तथा व्यास 14.3 मीटर है। यह मीनार यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल में शामिल है। इसके अंदर 379 सीढ़ियां हैं। यह मीनार ऊर्ध्वाधर से लगभग 95 सेंटीमीटर झुकी हुई है। पांच मंजिला इस मीनार की पहली तीन मंजिले लाल और बलुआ पत्थर से, चौथी मंजिल विशुद्ध संगमरमर से और पांचवी मंजिल बलुआ पत्थर और संगमरमर से निर्मित है ।

कुतुब मीनार का एक लंबा इतिहास रहा है। इसके बनने के पश्चात 1359 में बिजली गिरने से इस को काफी नुकसान हुआ था। 1803 के भूकंप में भी कुतुबमीनार को गंभीर क्षति हुई थी। 19वीं शताब्दी में अंग्रेजी हुकूमत के समय मीनार के कपोला के पुनुरुद्धार के दौरान इसे आकर्षक बनाने हेतु एक अंग्रेज अधिकारी स्मिथ ने इसमें सबसे ऊपर एक बंगाली छतरीनुमा कपोला (हिन्दू स्टाइल) जोड़ दिया। जिसे बाद में क़ुतुब मीनार की सुंदरता में बाधा समझ हटाकर दूसरी ओर रख दिया गया। अब इस कपोले को ‘Smith,s folly’ यानी ‘स्मिथ की भूल’ कहते हैं।

पहले कुतुब मीनार के अंदर सीढ़ियों पर चढ़ने और इसके अंदर उकेरी गई कुरान की आयतों तथा फूल-बेलों की महीन नक्काशी बिल्कुल पास से देखने की इजाजत थी। उदाहरण के लिए देवानंद और नूतन अभिनीत फ़िल्म “तेरे घर के सामने” का सदाबहार गाना “दिल का भंवर करे पुकार—” कुतुबमीनार के अंदर की सीढ़ियों पर ही फिल्माया गया था।

लेकिन सन 1981 में शुक्रवार के दिन मुफ्त दर्शन होने के कारण भारी भीड़ थी। अचानक कुतुब मीनार के अंदर बिजली चली गई और किसी ने अफवाह उड़ा दी कि कुतुब मीनार गिर रही है। इससे भगदड़ मच गई जिसमें कई स्कूली बच्चों सहित लगभग 45 लोग मारे गए थे। इस दर्दनाक हादसे के बाद सुरक्षा कारणों से कुतुब मीनार के अंदर आम जनता का प्रवेश बंद कर दिया गया है।

लाल किला यूनेस्को द्वारा सरंक्षित “विश्व धरोहर स्मारक” है :
लाल पत्थरों से निर्मित होने के कारण इस किले को लाल किला कहा जाता है। हालाँकि किले के कुछ भागों में संगमरमर का भी प्रयोग किया गया है। शाहजहां ने जब अपनी राजधानी को आगरा के बजाए दिल्ली स्थानांतरित किया, तब इसी स्थान पर सत्ता का केंद्र स्थापित किया। सुनते हैं कि शाहजहां इस किले का निर्माण भी संगमरमर से करवाना चाहता था परंतु राजस्थान से संगमरमर पत्थर ढो कर यहाँ तक लाना आसान न था। इसलिए उसका यह ख्वाब अधूरा ही रह गया।

लाल किला, प्राचीन दिल्ली के सात शहरों में से एक शाहजहाँबाद (शाहजंहा द्वारा आबाद किया गया स्थान) में स्थित है। प्राचीन दिल्ली के अन्य छह शहर –किला राय पिथौरा , मेहरौली, सीरी फोर्ट, तुगलकाबाद, फ़िरोज़ाबाद और शेरगढ़ (पुराना किला) हैं। लाल किले में टिकट लेकर आप दिल्ली गेट से प्रवेश करते हैं। लाल किले की प्राचीर पर जाने के लिए इसी गेट के पास से सीढियां और लिफ्ट है। यहाँ प्राचीर पर सदैव तिरंगा फहरता रहता है।

बताते चलें कि दिल्ली में मुख्यतः चार गेट है- दिल्ली गेट, लाहौरी गेट, कश्मीरी गेट, अजमेरी गेट। जो गेट जिस शहर की तरफ खुले उसके नाम पर गेट। दिल्ली की तरफ खुलने वाला दिल्ली गेट, लाहौर की तरफ खुलने वाला लाहौरी गेट। इसमें से दिल्ली गेट और लाहौरी गेट, लाल किले के अंदर है। कश्मीरी गेट, महाराणा प्रताप अंतराज्जीय बस अड्डे के पास है। इसके नाम से कश्मीरी गेट मेट्रो स्टेशन भी है। अजमेरी गेट नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास है। एक ओर पहाड़गंज- दूसरी तरफ अजमेरी गेट।

किले के अंदर दिल्ली गेट के पश्चात छत्ता बाजार (मीना बाजार) आता है। छत्ता बाजार देश का पहला छत युक्त बाजार था। इसमें दुकानदार और खरीदार महिलाएं ही होती थी। वर्तमान में इस बाजार में विभिन्न प्रदेशों के वस्त्र, कलाकृतियां तथा नकली आभूषण आदि मिलते हैं। छत्ता बाजार के पश्चात लाहौरी गेट आता है। लाहौरी गेट के ऊपर के दो तलों को संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है। इसमें मुग़ल कालिक तथा ब्रिटिश कालिक हथियार, वस्त्र और उपकरण रखे है।

लाहौरी गेट से दीवाने -ए-आम में प्रवेश करते हैं। दीवाने-ए-आम में शाहजहाँ आम जनता से मिलता था। वह संगमरमर से बने ऊँचे सिहांसन पर बैठता था। यही पर जनता की फरियाद सुनी जाती थी और अपराधियों को हाथी के पैरों से कुचलवाने, सर कलम करने जैसे वीभत्स दंड दिए जाते थे। दीवाने-ए-आम के पश्चात शाहजहाँ का नौबत खाना, रंग महल आता है। नौबत खाना यानि संगीत कक्ष। नमाज का वक़्त बताने के लिए यहाँ पर दिन में पांच बार नगाड़ा बजता था। रंग महल यानि बेगम निवास या नूरजहां कक्ष। इस कक्ष में शाही महिलायें और परिवार के अन्य सदस्य रहते थे।

इसके पश्चात विश्वप्रसिद्ध दीवाने-ए-खास आता है। इसमें स्वर्ण जड़ित नक्कासी की गयी है। यहाँ पर शाहजहाँ विशिष्ट लोगों से कोहिनूर हीरा- जड़ित मयूर सिंहासन पर बैठकर मिलता था। सिंहासन का आकार मयूर जैसा है, इसलिए इसे मयूर सिंहासन कहा गया। कोहिनूर हीरा वही हीरा है, जिसे नादिर शाह भारत से लूटकर ईरान ले गया। वर्तमान में यह हीरा ब्रिटेन की महारानी के ताज की शोभा बढ़ा रहा है। कालजयी पंक्ति——–हमी अस्तो, हमी अस्तो, हमी अस्तो , (यदि धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यही हैं, यही हैं, यही हैं) भी इमारत के इसी हिस्से पर लिखी है। हालाँकि यह पंक्ति कश्मीर के संदर्भ में थी।

इसके पश्चात औरंगजेब द्वारा निर्माण करायी गई मस्जिद आती है। सेक्युलर , धिम्मी इतिहासकार लिखते हैं कि वह अत्यंत धार्मिक व्यक्ति था। कुरान की प्रतियां लिखकर तथा टोपी सिलकर बेचने से होने वाली आय से उसने इस मस्जिद का निर्माण शाही परिवार द्वारा नमाज़ अता करने के लिए करवाया था। इसी मस्जिद के पास यमुना नदी की ओर खुलने वाला गुप्त दरवाजा भी है।अंग्रेजो द्वारा किले पर कब्ज़ा करने के पश्चात अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफ़र इसी दरवाजे से निकल भागा था। हालांकि बाद में पकड़े गए और अंग्रेजो ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा देकर रंगून में नजरबंद कर दिया था। वही पर उन्होंने अंतिम सांस ली ।

मस्जिद के पश्चात बागे-ए-हयात आता है। हयात यानि स्वर्ग या ज़न्नत। इसमें चौड़े गलियारों के दोनों तरफ हरियाली और फूलों के पौधे होते थे। बाग में पानी बहता रहता था। कुरान में जन्नत की कल्पना में ऐसे ही बाग़ का वर्णन है। बाग़ के एक और सावन तथा दूसरी और भादों इमारत है। यहाँ पर दीप जलाने, संगीत सुनने तथा कृत्रिम वर्षा करवाने की व्यवस्था थी। बादशाह का जब भी बारिश का आनंद लेने का मन करता था, “सावन-भादों ” में चले आते थे। इन सब इमारतों के मध्य में खुले स्थान पर शाम को ‘लाइट एंड साउंड ‘ शो होता है। इस शो में इस किले के इतिहास के बारे में जानकारी दी जाती है।

लाल किला यमुना नदी के तट पर स्थित है। किले के चारों और गहरा, चौड़ा नाला है जिसमें किले की सुरक्षा को अभेद्य बनाने हेतु पानी प्रवाहित होता रहता था। सभी दरवाजों पर लोहे की लंबी, मोटी, नुकीली कीले ठोंकी गयी है ताकि हाथी अपने सिर के प्रहार से इन मजबूत दरवाजों को न तोड़ पाएं। किले के अंदर स्थित बैरकों में पहले मुग़ल सैनिक, तत्पश्चात अंग्रेजी सैनिक और आज़ादी के बाद भारतीय सैनिक रहते थे। सन 2003 से बैरकों को भारतीय सैनिकों से भी खाली करा लिया गया है।

लाल किला यानी रेड फोर्ट की पहचान मुख्यतः यह है कि प्रति वर्ष 15 अगस्त को भारतवर्ष के प्रधानमंत्री इसी किले की प्राचीर से देश को संबोधित करते है। देश के पहले प्रधानमंत्री स्व. जवाहरलाल नेहरू ने देश को लाल किले की प्राचीर से सर्वप्रथम 15 अगस्त 1947 को संबोधित किया था। तभी से ये परंपरा अनवरत चली आ रही है।

विनय सिंह बैस, लेखक/अनुवाद अधिकारी

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)

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