सरदार वल्लभ भाई पटेल की पुण्यतिथि पर विशेष

पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री, वाराणसी : सरदार वल्लभ भाई पटेल की आज 70वीं पुण्यतिथि है। पटेल को लौह पुरुष के नाम से जाना जाता है। आजादी के बाद जब वह देश के गृहमंत्री बने तो उस वक्त उन्होंने सभी छोटी और बड़ी रियासतों का भारत में विलय कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इतिहास में उन्हें इस उपलब्धि के लिए विशेष तौर पर याद किया जाता है। हालांकि सरदार पटेल निजी जीवन में भी काफी मजबूत शख्सियत थे। आज आपको उनकी जिंदगी के जुड़ा ऐसा ही किस्सा हम आपको बताने जा रहे हैं।सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर को 1875 में हुआ था। पटेल गुजरात के खेड़ा जिले में पैदा हुए थे। खेड़ा में जब पटेल पैदा हुए तो शायद ही किसी को पता था कि एक दिन वह आजाद भारत को एकजुट करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

सरदार पटेल ने 22 साल की उम्र में 10वीं की परीक्षा पास की। आर्थिक तंगी ऐसी थी कि स्कूली शिक्षा के बाद पढ़ न सके और किताबें लेकर घर पर ही जिलाधिकारी की परीक्षा की तैयारी में लग गए। मेहनत और लगन का परिणाम हमेशा मीठा होता है और पटेल के साथ भी ऐसा ही हुआ। उन्होंने इस परीक्षा में सर्वाधिक अंक प्राप्त किए। इसके बाद 36 साल में वह इंग्लैंड चले गए और वहां वकालत की पढ़ाई की।

पटेल ने जिंदगी में सबकुछ मेहनत से हासिल किया था इसलिए अपने काम के प्रति उनको बेहद प्यार था। एक ऐसा वाकया है जब वह कोर्ट में बहस कर रहे थे और तभी उन्हें उनकी पत्नी की मौत की खबर मिली। दरअसल, बात 1909 की है जब उनकी पत्नी मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती थी। इलाज के दौरान उनकी पत्नी झावेर बा का निधन हो गया। एक व्यक्ति ने कोर्ट में बहस कर रहे पटेल को पर्ची पर लिखकर यह दुखद खबर दी। उन्होंने उसे पढ़ा और पर्ची जेब में रखते हुए बहस जारी रखी। वह केस जीत गए और फिर सबको बताया कि उनकी पत्नी का निधन हो गया है।

सरदार पटेल का इतिहास उन्हें देश को एकजुट करने के लिए याद करता है। जिस वक्त देश आजाद हुआ उस वक्त देश में कुल 562 रियासतें थीं। इनका भारत में विलय करवाना एक बड़ा काम था। सरदार पटेल ने अपनी सूझबूझ से यह काम बड़े शानदार तरीके से किया। दरअसल, उस वक्त मुख्य तौर पर केवल जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर रियासतें ही ऐसी थीं जो भारत में विलय के पक्ष में नहीं थी। सरदार पटेल भी लौह पुरुष थे और उन्होंने विद्रोह के लिए तैयार जूनागढ़ और हैदराबाद के निजाम को भारत के साथ विलय करने के लिए तैयार कर लिया।

यहां यह बता दें कि जिस वक्त भारत आजाद हुआ उस वक्त अंग्रेजों ने देश की सभी रियासतों को भारत या पाकिस्तान के साथ जाने या फिर आजाद रहने का विकल्प दिया था। सरदार पटेल ने सिविल सर्वेंट वीपी मेनन के साथ मिलकर 5 जुलाई 1947 को देश की आजादी से पहले ही सभी 562 रियासतों को भारत में विलय का संदेश भेजते हुए उनके लिए 15 अगस्त 1947 की समयसीमा तय कर दी थी। इस तारीख तक सिर्फ जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर को छोड़कर शेष सभी रियासतों ने भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था।

जूनागढ़ पाकिस्तान के साथ जाना चाहता था। सरदार पटेल के लिए यह नाक का सवाल था क्योंकि जूनागढ़ उनके गृहराज्य गुजरात में था। उस वक्त जूनागढ़ का नवाब महाबत खान था। महाबत खान मुस्लिम लीग और जिन्ना के काफी नजदीक था। महाबत खान ने पाकिस्तान के साथ जाने का फैसला किया और महाबत के फैसले को पाकिस्तान ने 13 सितंबर 1947 को इसको स्वीकार कर लिया. उसी वक्त हिन्दू बहुल जूनागढ़ की जनता ने इसका विरोध किया।

नवाब के इस फैसले से खुद सरदार पटेल भी नाराज हुए और उन्होंने सेना भेजकर जूनागढ़ के दो बड़े प्रांतों मांगरोल और बाबरिवाड़ पर कब्जा जमा लिया, जिसके बाद नवाब पाकिस्तान भाग गए। इसके बाद जूनागढ़ में जनमत संग्रह हुआ और 99 फीसदी से ज्यादा जनता भारत के साथ विलय के पक्ष में थी। इसी तरह ”ऑपरेशन पोलो” के तहत हैदराबाद के निजाम को भी पटेल ने झुकने पर मजबूर किया और 19 सितंबर 1948 को हैदराबाद भारत का हिस्सा बन गया। इन रियासतों के भारत में विलय करवाने वाले सरदार पटेल को लौह पुरुष की तरह देश हमेशा याद करता है।

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