मिसाइल मैन APJ अब्दुल कलाम साहब की पुण्यतिथि पर विशेष

Kolkata Desk : APJ अब्दुल कलाम साहब भारत के ग्यारहवें और देश के पहले गैर-राजनीतिज्ञ राष्ट्रपति थे। इन्हें ये पद तकनीकी एवं विज्ञान में विशेष योगदान की वजह से मिला था। वे एक इंजिनियर व वैज्ञानिक थे। कलाम सर् 2002-07 तक भारत के राष्ट्रपति भी रहे। कलाम साहब ने लगभग चार दशकों तक वैज्ञानिक के रूप में काम किया।

अब्दुल कलाम साहब का पूरा नाम डॉ. अवुल पाकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम था। इनका जन्म 15 अक्टूबर 1931 को धनुषकोडी गांव, रामेश्वरम, तमिलनाडु में मछुआरे परिवार में हुआ था, वे तमिल मुसलमान थे। इनके पिता का नाम जैनुलाब्दीन तथा माता का नाम असिंमा था। इनकी मृत्यु 27 जुलाई 2015 को शिलॉन्ग, मेघालय में हुई।

इन्हें किताबें पढना, लिखना तथा वीणा वादन का शौक था। वे एक मध्यम वर्गीय परिवार के थे। इनके पिता अपनी नाव मछुआरों को देकर घर चलाते थे। बालक कलाम को भी अपनी शिक्षा के लिए बहुत संघर्ष करना पढ़ा था। वे हर सुबह घर-घर जाकर अख़बार बांटते थे और उन पैसों से अपने स्कूल की फीस भरते थे। अब्दुल कलाम साहब ने अपने पिता से अनुशासन, ईमानदारी एवं उदार स्वभाव में रहना सिखा था। इनकी माँ ईश्वर में असीम श्रद्धा रखने वाली थी। कलाम साहब के तीन बड़े भाई व एक बड़ी बहन थी।

इनकी आरंभिक शिक्षा रामेश्वरम एलेमेंट्री स्कूल से हुई थी। 1950 में कलाम साहब ने बीएससी की परीक्षा सेंट जोसेप्स कॉलेज से किया था। इसके बाद 1954-57 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (MIT) से एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया। बचपन में उनका सपना फाइटर पायलट बनने का था, लेकिन समय के साथ ये सपना बदल गया।

1958 में कलाम साहब D.T.D.&P. के तकनीकी केंद्र में वरिष्ट वैज्ञानिक के रूप कार्य करने लगे। यहाँ रहते हुए ही इन्होंने प्रोटोटाइप होवर क्राफ्ट तैयार करने के लिए वैज्ञानिक टीम का नेतृत्व किया। करियर की शुरुवात में ही अब्दुल कलाम साहब ने इंडियन आर्मी के लिए एक स्माल हेलीकाप्टर डिजाईन किया था। 1962 में अब्दुल कलाम साहब रक्षा अनुसंधान को छोड़ भारत के अन्तरिक्ष अनुसंधान में कार्य करने लगे। 1962 से 82 के बीच वे इस अनुसंधान से जुड़े कई पदों पर कार्यरत रहे। 1969 में कलाम साहब ISRO में भारत के पहले SLV-3 (Rohini) के समय प्रोजेक्ट हेड बने।

अब्दुल कलाम साहब के नेतृत्व में 1980 में रोहिणी को सफलतापूर्वक पृथ्वी के कक्ष में स्थापित कर दिया गया। इनके इस महत्वपूर्ण योगदान के लिए 1981 में भारत सरकार द्वारा इनको पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। अब्दुल कलाम साहब हमेशा अपनी सफलता का श्रेय अपनी माता को देते थे। उनका कहना था उनकी माता ने ही उन्हें अच्छे-बुरे को समझने की शिक्षा दी। वे कहते थे “पढाई के प्रति मेरे रुझान को देखते हुए मेरी माँ ने मेरे लिये छोटा सा लैम्प खरीदा था, जिससे मैं रात को 11 बजे तक पढ सकता था। माँ ने अगर साथ न दिया होता तो मैं यहां तक न पहुचता।”

1982 में वे फिर से रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के निर्देशक बनाये गए। इनके नेतृत्व में ‘इंट्रीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम’ को सफलतापूर्वक शुरू किया गया। अग्नि, पृथ्वी व आकाश मिसाइल के प्रक्षेपण में कलाम साहब ने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 1992 में APJ अब्दुल कलाम साहब रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार तथा सुरक्षा शोध और विकास विभाग के सचिव बनाये गए। वे इस पद पर 1999 तक कार्यरत रहे। भारत सरकार के मुख्य वैज्ञानिकों की सूची में इनका नाम शामिल है। सन 1997 में APJ अब्दुल कलाम साहब को विज्ञान एवं भारतीय रक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए भारत के सबसे बड़े सम्मान भारतरत्न से सम्मानित किया गया।

सन 2002 में कलाम साहब को भाजपा की एनडीए सरकार ने राष्ट्रपति के चुनाव के समय अपना उम्मीदवार बनाया था और 18 जुलाई 2002 को एपीजे अब्दुल कलाम साहब ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली। कलाम साहब कभी भी राजनीति से नहीं जुड़े रहे, फिर भी वे भारत के राष्ट्रपति पद पर विराजमान हुए।
जीवन में सुख सुविधा की कमी के बावजूद वे किस तरह राष्ट्रपति के पद तक पहुँचे, ये बात हम सभी भारतीयों और दुनिया के लोगों के लिये प्रेरणादायक है। आज के बहुत से युवा एपीजे अब्दुल कलाम साहब को अपना आदर्श मानते है। छोटे से गाँव में जन्म लेकर इनती ऊंचाई तक पहुँचना कोई आसान बात नहीं है। कैसे अपनी लगन, कड़ी मेहनत और कार्यप्रणाली के बल पर असफलताओं को झेलते हुए, वे आगे बढते गये इस बात से हम सभी लोगों को जरुर कुछ सीखना चाहिए।

एपीजे अब्दुल कलाम साहब को बच्चों से बहुत अधिक स्नेह था। वे हमेशा अपने देश के युवाओं को अच्छी सीख देते रहते थे। उनका कहना था कि युवा चाहे तो पूरा देश बदल सकता है। देश के सभी लोग उन्हें ‘मिसाइल मैन’ के नाम ने संबोधित करते थे। डॉ. एपीजे कलाम साहब को भारतीय प्रक्षेपास्त्र के पितामह के रूप जाना जाता है। कलाम साहब भारत के पहले ऐसे राष्ट्रपति थे जो अविवाहित होने के साथ-साथ वैज्ञानिक पृष्ठभूमि से राजनीति में आए थे। राष्ट्रपति बनते ही एपीजे अब्दुल कलाम ने देश में एक नए युग की शुरुआत की जो कि आज तक उदाहरण है।

राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद कलाम साहब ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी’ तिरुवनंतपुरम के चांसलर बन गए थे। साथ ही अन्ना यूनिवर्सिटी के एरोस्पेस इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रोफेसर बन गए थे। इसके अलावा उन्हें देश के बहुत से कॉलेजों में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में बुलाया जाता था।

APJअब्दुल कलाम साहब ने अनेको किताबों की रचना की थी।

APJ अब्दुल कलाम साहब को मिले मुख्य पुरस्कार :
1981 में भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण दिया गया।
1990 में भारत सरकार द्वारा पद्मविभूषण
1997 में भारत सरकार द्वारा देश का सर्वोच्च सम्मान भारतरत्न से नवाजा गया।

इसके अलावा उन्हें बहुत सारे यूनिवर्सिटी के द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया।

APJ अब्दुल कलाम साहब की मृत्यु 27 जुलाई 2015 को शिलॉन्ग, मेघालय गए थे। वहां IIM शिलॉन्ग में ही कार्यक्रम के दौरान अब्दुल कलाम साहब की तबियत ख़राब हो गई और वे बच्चों को लेक्चर देते हुए ही अचानक गिर पड़े। जिसके बाद उन्होंने 84 वर्ष की अवस्था में अपनी अंतिम साँसे ली।

मृत्यु के बाद 28 जुलाई को उन्हें शिलॉन्ग से दिल्ली लाया गया। उन्हें दिल्ली के घर में आम जनता के दर्शन के लिए रखा गया। इसके बाद उन्हें उनके गाँव ले जाया गया और 30 जुलाई 2015 को कलाम साहब का अंतिम संस्कार उनके पैत्रक गाँव रामेश्वरम के पास हुआ।

मिसाइल मैन कहे जाने वाले अब्दुल कलाम साहब ने देश की सेवा अंतिम समय तक किया और अपने ज्ञान के द्वारा उन्होंने देश को कई मिसाइल सम्पन्न शक्तिशाली राष्ट्र बनाया। उन्होंने भारत को सुरक्षित बनाने की दृष्टि से पृथ्वी, अग्नि जैसी मिसाइल दी। ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में विख्यात रहे कलाम साहब देश को शक्तिशाली एवं आत्म निर्भर बनाना चाहते थे।

अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में इन्होने देश के लिए बहुत योगदान दिया। वह अपने सरल एवं साधारण व्यवहार के लिए प्रसिद्ध थे। इनके मुस्लिम होने के कारण इन्हें दुसरे मुस्लिम देश अपने देश में रहने का आमंत्रण देते रहते थे, परंतु देश के प्रति प्रेम के कारण उन्होंने कभी देश को नहीं त्यागा। इन्हें भारत का एक सफल राष्ट्रपति के तौर पर देखा जाता है। वे देश के युवाओं को समय-समय पर मार्गदर्शन करते रहते थे। उन्होंने अपने किताबों के जरिये भी मार्गदर्शन किया।

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