बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष लेख…

महात्मा बुद्ध का संदेश सारी मानवता के लिए श्रेयस्कर है

राजीव कुमार झा, लखीसराय । महात्मा बुद्ध महामानव थे और उनके जीवन संदेशों को सारी दुनिया ने अपनाया! उनके द्वारा प्रतिपादित बौद्ध धर्म आज भी भारत के अलावा सारी दुनिया में प्रचलित है। महात्मा बुद्ध का जन्म छठी शताब्दी ईसा पूर्व काल में हुआ था और उन्होंने इस दौर में वैदिक ब्राह्मण धर्म की विसंगतियों को चुनौती दी थी। आज भी वर्ण
व्यवस्था और जातिप्रथा हमारे देश की ज्वलंत समस्या है। आधुनिक काल में भीमराव आंबेडकर के नेतृत्व में काफी तादाद में दलितों ने बौद्ध धर्म दर्शन को अंगीकार करके हिन्दू धर्म के प्रति अपने मन के क्षोभ और आक्रोश को प्रकट किया। लेकिन महात्मा बुद्ध के जीवन दर्शन में शांति और प्रेम का स्थान सर्वोपरि है।

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राजीव कुमार झा, कवि/ समीक्षक

बुद्ध ने आज बैसाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में ज्ञान प्राप्ति के बाद संन्यास ग्रहण करके मानवता की सेवा को अपने जीवन का धर्म बनाया था। वह किसी से घृणा नहीं करते थे और जीवन में विवेक बुद्धि और ज्ञान पर उन्होंने जोर दिया। जीवन को दुखमय बताने वाले इस लोक नायक ने समाज में आत्मिक चेतना का संचार करके उसे नयी दिशा और गति प्रदान की थी। उन्हें सभी मनुष्यों से प्रेम था और उनके विचारों के आधार पर आज के समय में सामाजिक परिवर्तन की किसी भी प्रकार की राजनीति निन्दनीय है।

बुद्ध पूर्णिमा के दिन बोधगया में मेला लगता है। सारे संसार से इस दिन यहां बौद्ध श्रद्धालुओं का आगमन होता है। यहां का मंदिर काफी प्राचीन है और इतिहासकार इसे गुप्त काल का बना मानते हैं। इसे यूनेस्को ने विश्वदाय स्मारक घोषित किया है और इसकी सुरक्षा पर ध्यान दिया जाना चाहिए। महात्मा बुद्ध ने संसार को शांति और प्रेम की शिक्षा दी और मनुष्य जीवन को साधना के समान बताया। वह सभी प्राणियों से प्रेम करते थे। सोमदेव ने अपने ग्रंथ कारुण्यरत्नाकर: बोधिसत्व: में इसका सुंदर चित्रण किया है।

बुद्ध पूर्णिमा के दिन सुजाता का स्मरण भी प्रासंगिक है। किंवदंती के अनुसार बोधगया जिसका प्राचीन नाम उरुवेला है, यहां पीपल के वृक्ष के नीचे जब कठोर तपस्या से उनका शरीर कृशकाय हो गया था तो पास के एक गांव की एक लड़की सुजाता ने उन्हें किसी कटोरे में खीर लाकर खिलाया था और इस दिन उसने भगवान बुद्ध को जीवन में मध्यम मार्ग अपनाने का संदेश दिया था। बोधगया फल्गु नदी बौद्ध ग्रंथों में जिसे निरंजना कहा गया है, यह इसके तट पर स्थित है। बैसाख पूर्णिमा के दिन ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध यहां से सारनाथ रवाना हो गये थे और उन्होंने वहां अपना पहला उपदेश दिया था और धर्म चक्र प्रवर्तन किया था।

इंदुपुर, पोस्ट – बड़हिया
जिला – लखीसराय
बिहार

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