सौमेन रॉय की कविता : सुनापन

।।सुनापन।।
सौमेन रॉय

ये सुनापन जो मेरी आंखों में नमी बनकर उतरी है,
पूछ रही है मेरी धड़कनो से किसकी गुनाह है ये?
जल रही है इंसानियत खुले आम,
सिसकियां दबी पड़ी है जैसे परकटे परिंदा और खुला आसमान।
सन्नाटों के बीच बिलखती हुई हंसी और अरमानों की तले,
ज़िंदगी फिर से गले लगा ले रात की चादर तले।

©®सौमेन रॉय
(सर्वाधिकार सुरक्षित)

सौमेन रॉय, कवि

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