कोरोना के काल में
घर-घर में सब कैद हो गये
कोरोना के नाम से
बैठ गए सब काम से
कलयुग में सब हुए मशीनी
खुद में ही रहकर है जीनी
स्वार्थ भावना प्रबल हो गयी
रीति प्रीति की सबसे छीनी
हुआ धमाका कोरोना का
आकर गिरे धड़ाम से
बैठ गए सब काम से।
क्या मथुरा क्या जयपुर, काशी
सभी हुए घर घर के वासी
छुआ-छूत के कोरोना से
छाई चारो ओर उदासी
मुँह पर लगे मुछीके सब के मुक्त हुए हज्जाम से
बैठ गए सब काम से।
श्रमिक वर्ग की आफत आई
बंद हो गये काम, कमाई
पैदल निकल पड़े गाँवों को
बहुत हुई सबकी रुसवाई
माॅल सिनेमा भीड़ भड़क्का
सूने सुबहशाम से
बैठ गए सब काम से।
-सोनम यादव
गाजियाबाद