गांव के प्राथमिक विद्यालय के स्वतंत्रता दिवस समारोह की कुछ धूमिल यादें

रायबरेली। अपने गांव के प्राथमिक विद्यालय के स्वतंत्रता दिवस समारोह की कुछ धूमिल यादें अब भी मन मस्तिष्क में हैं। तब हमारे विद्यालय प्राथमिक पाठशाला बरी में प्रधानाध्यापक अवधेश बहादुर सिंह हुआ करते थे। बृजमोहन सिंह, देव नारायण सिंह, अयोध्या सिंह शिक्षक थे। 15 अगस्त के दिन हम सब बच्चे नहा-धोकर और साफ-सुथरे कपड़े पहन कर सुबह-सवेरे विद्यालय पहुंच जाया करते थे। सभी बच्चों के एकत्र होने पर सबसे पहले विद्यालय में झंडारोहण होता था और फिर स्वर्गीय रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित राष्ट्रगान –

“जनगण मन अधिनायक जय हे, भारत भाग्य विधाता।
पंजाब, सिंधु, गुजरात मराठा, द्राविड़, उत्कल, बंग।
जय हे, जय हे, जय हे,
जय, जय, जय, जय हे।”
सस्वर गाया जाता।

राष्ट्रगान के पश्चात शिक्षकों के नेतृत्व में पूरे गांव में प्रभात फेरी निकाली जाती। आगे-आगे शिक्षक होते, उनके पीछे देश भक्ति के गीत गाते और पूरे जोश खरोश से नारे लगाते हम छात्र। आगे से स्वर गूंजता- “झंडा ऊंचा रहे हमारा”
फिर
पीछे से स्वर बुलंद होता-
“विजयी विश्व तिरंगा प्यारा।”
प्रभात फेरी के दौरान-
“साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल”,
“न हिन्दू बनेगा, न मुसलमान बनेगा”,
“हम लाएं हैं तूफान से कश्ती निकाल के”, जैसे लोकप्रिय देशभक्ति गीत गाये जाते।

उस समय कोई ज्यादा तामझाम नहीं हुआ करता था। कोई लाउडस्पीकर या डीजे नहीं था। सभी बच्चों के पास झंडे भी नहीं हुआ करते थे। एक-दो बच्चों के पास ही छोटा हाथ से बना हुआ झंडा रहता था। सबसे सीनियर कक्षा 5 के बच्चे आगे चलते थे, बाकी जूनियर बच्चे उनसे पीछे। कुछ गांव वाले उस दिन गांधी टोपी भी लगा लेते थे क्योंकि उस समय तक गांधीजी और भारत की स्वतंत्रता एक दूसरे के पर्याय माने जाते थे। गांधी टोपी देशभक्ति, अहिंसा, सेक्युलरिज्म की प्रतीक हुआ करती थी।

प्रभात फेरी विद्यालय से शुरू होकर बहेलिया पार, नउवन टोला से गुजरते हुए हमारे मोहल्ले ‘चौघरा’ पहुंचती। वहां पर दादा स्वर्गीय कृपाल सिंह के दरवाजे कुछ देर प्रभात फेरी रुकती थी। हम लोग अपने मोहल्ले में कुछ अधिक जोश से “झंडा ऊंचा रहे हमारा” का सस्वर गान करते। इस दौरान जिन नन्हें हाथों में तिरंगे हुआ करते थे, वे उसे पूरा हाथ उठाकर आकाश की तरफ ऊंचा कर देते थे। उनका झंडा आकाश तक तो तब भी नहीं पहुंचता था लेकिन कई बार नीम की नीचे वाली डालियों औऱ पत्तों को जरूर छू जाता था। उन कोमल हाथों के लिये वही आसमान था।

प्रभात फेरी के दौरान गांव में किसी के घर से हमें बताशा तो किसी घर से रेवड़ी मिल जाती थी। शायद परधान जी के घर से लड्डू भी मिल जाया करते थे। उन बताशों, लड्डुओं का स्वाद आज की किसी भी महंगी मिठाई, चॉकलेट से अधिक स्वादिष्ट हुआ करता था क्योंकि यह चीज़ें ऐसे ही अवसरों पर हमें मिल पाती थी।

प्रभात फेरी गांव के दो हिस्सा, तीन हिस्सा मोहल्लों से गुजरते हुए, पंडित बाबा, हरिनाम बाबा और मुंशी बाबा के दरवाजे से गुजरते हुए वापस विद्यालय पहुंचती थी। विद्यालय वापस लौटने के पश्चात गुरुजी हमें स्वतंत्रता दिवस के महत्व के बारे में बताते थे। गांधी, नेहरू के बाद सुभाष, सरदार पटेल के बारे में भी बताया जाता था। पता नहीं किन कारणों से चंद्रशेखर आज़ाद, सरदार भगत सिंह, ठाकुर रोशन सिंह आदि क्रांतिकारियों के बारे में ज्यादा नहीं बताया जाता था। अंत मे सभी बच्चों को मिठाई बांट कर विद्यालय से विदा किया जाता था।

आज बच्चों को स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम में भाग लेते हुए देखकर उन पुराने दिनों की याद ताजा हो गई।
जय हिंद, जय भारत।
वंदेमातरम।

(विनय सिंह बैस)
गांव-बरी, पोस्ट-मेरुई, जनपद- रायबरेली (उ.प्र)

विनय सिंह बैस, लेखक/अनुवाद अधिकारी

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