…सो पाछे पछताय (कहानी) :– श्रीराम पुकार शर्मा

“पेड़ जब उखड़ते हैं, तब वे अपनी जड़ों से भी छूट जाते हैं” – ‘दिनकर’ ।
‘दिनकर’ की इसी भावभूमि पर आधारित है मेरी स्वरचित नवीन कहानी “……… सो पाछे पछताए”।
इस कहानी सम्बन्धित आप विद्व जनों की टिप्पणियों का सादर प्रतीक्षा रहेगी।
…….. सो पाछे पछताय
“कॉव-कॉव-काँव! वह देखो कितना बड़ा कोई चीज इधर ही आ रहा है!”- समुद्र के किनारे की ओर आते एक बड़े जहाज को देख कर उस किनारे पर उछल-कूद करता एक छोटे से कौवे ने ‘कॉव-कॉव-काँव’ करके अपने माँ-बाप कौवों से कुछ भयभीत स्वर में कहा I उसके पूरे परिजन ही समुद्र के किनारे पर ही थे जो हर लहरों के लौटने के बाद उनके साथ किनारे पर आये और परित्यक्त मृत छोटे-छोटे जीव-जन्तुओं को अपनी चोंच में दबाते और फिर उसे खाते जा रहे थे I
“हाँ, माँ! यह तो बहुत ही बड़ा है I चलो भागो सब यहाँ से, नहीं तो हम सब उसके नीचे आ जायेंगे I” – उस छोटे कौवे के साथ ही उसके एक बड़े भाई कौवे ने भी ‘कॉव-कॉव-काँव’ करते हुए सबको सचेत किया, जिससे सभी कौवें समुद्र से दूर तक फैले रेत पर भागने लगे I

“काँव-काँव-काँव I डरो नहीं I यह एक बड़ा जहाज है जो समुद्र में बहुत दूर-दूर के देशों तक जाया करता है I कहीं भागने की जरूरत नहीं है, यह किनारे तट तक नहीं आ सकता है I सभी निश्चिन्त रहो I लो छोटे, यह लो समुद्री स्टार फिश है I इसे खाओ I बहुत अच्छा लगेगा I” – बड़ा बुजुर्ग वृद्ध कौवा ने उन्हें समझाते और हिम्मत देते हुए कहा, जो उनके पिता था I तुरंत अपनी चोंच में पकड़े एक मरा हुआ छोटा-सा स्टार फिश छोटे कौवा के पास रख दिया I यह देखकर चार अन्य कौवे भी पास आ गए I उन्हें पास आया देख, छोटा कौवा झट से उस मरे हुए स्टार फिश को अपनी चोंच में पकड़ा और उनसे थोड़ा अलग हटकर तुरंत ही उसे अपने मुँह में डाल कर गटक गया I आये हुए चारों कौवे भी इसी कौवे परिवार के ही सदस्य थे I उन चारों के पीछे एक बूढी कौवा भी आई और बुजुर्ग वृद्ध कौवे के पास खड़ी हो गई I वह उन पाँचों कौवों की माँ कौवा थी I फिर वृद्ध पिता कौवा समुद्र में आते-जाते लहरों की ओर चला गया I हर बार लहरें अपने साथ उनके अनुकूल कुछ न कुछ भोज्य-पदार्थ जरूर लाकर किनारे छोड़ जाती थीं I

समुद्र के किनारे के एक बड़े और घने पेड़ पर ही इन सबका आश्रय-घोसलें हैं I उस पर बने लगभग सभी घोंसलें इनके ही जैसे अन्य अनेक कौवों के ही हैं I यही समुद्री किनारा ही इन कौवों के दिन-प्रतिदिन का भोजन-स्थल है I विभिन्न जीव-जन्तुओं से पूर्ण होने पर भी समुद्र मृत जीवों को अक्सर अपने लहरों के माध्यम से किनारे कर दिया करता है, जिसे अपने आहार स्वरूप प्राप्त कर इनके जैसे ही अनगिनत कौवें और दूसरे जीव-जंतु परिवार जीवित रहते हैं I समुद्र भी अपने पर आधारित किसी भी जीव-जन्तु के विश्वास को आज तक टूटने नहीं दिया है और न किसी को आज तक भूखा ही रखा है I
परिवार का वह अनुभवी वृद्ध पिता कौवा सदैव उनके आस-पास ही रह कर बहुत ही सावधानीपूर्वक उनका देख-रेख किया करता है I जरा-सा भी खतरे का आभास पाते ही ‘काँव-काँव-काँव’ करते हुए सबको सचेत कर सबको अपने संग लिये वहाँ से फुर्र हो जाया करता था I अतः आज तक उसके परिजन के साथ कोई अनहोनी बात नहीं हुई है I सभी पेट भर भोजन कर चुके होते, तब जाकर वह वृद्ध पिता कौवा स्वयं भोजन करने आगे बढ़ता था I उसकी मजबूत छत्रछाया में सभी सुखी और निश्चिन्त थे I

बच्चे स्वभाव से चंचल होते ही हैं I जैसे ही कोई जहाज किनारे पर आता, तो फिर लाख मना करने पर भी सभी बच्चे कौवें उड़-उड़ कर उस जहाज पर जाकर सवार हो जाया करते थे I लाचारी में उस वृद्ध पिता कौवे को भी उनकी रक्षा हेतु जहाज पर जाना ही पड़ता था I बूढी माँ कौवा बेचारी किनारे से ही उनकी गतिविधियों को देख-देख कर आनंदित होती रहती थी I चुकी पिता उनके संग होते, अतः वह बच्चों की ओर से बिल्कुल निश्चिन्त ही रहती थी I समुद्र में उठती लहरों पर अठखेलियाँ करते जहाज पर उन्हें कभी ऊपर तो कभी नीचे आना-जाना बहुत ही अच्छा लगता था I कुछ दूर तक चले जाते और कुछ तरो-ताजा छोटी-छोटी मछलियों का शिकार कर सभी वापस किनारे लौट आते थे I वृद्ध पिता कौवे को भी यह सब अच्छा ही लगता था I कभी-कभार बच्चों की इच्छाओं को भी तो सम्मान करना ही चाहिए I इसी बहाने उसके बच्चे कावें भी कुछ विशेष आनंदित हो जाया करते थे I
पिता कौवे की बात सुनकर रेत के मैदान की ओर भागे उसके सभी बच्चे कौवें वापस लौट आये I फिर तो पहले की भाँति ही पिता कौवे के द्वारा मना करने पर भी सभी उस समुद्री बड़े जहाज की ओर उड़ चले और एक-एक कर सभी जहाज के सबसे ऊँचे मस्तूल पर सवार हो गए I उनकी रक्षा हेतु वृद्ध पिता कौवे को भी उनके पीछे-पीछे उड़ कर जहाज के मस्तूल पर जाना ही पड़ा I सभी बच्चे बहुत प्रसन्न थे I

इतनी ऊँचाई पर वे आज से पहले कभी तक न बैठे थेI इतनी ऊँचाई से दूर तक देखना उनके लिए अपने आप में बड़ा ही रोमांचक था I उस ऊँचाई से वे सभी एक तरफ तो काफी दूर-दूर तक फैले विस्तृत लगभग समतल नीले समुद्र को देख पा रहे थे, तो दूसरी ओर वे दूर-दूर तक फैली शस्य-श्यामला धरती और उस पर खड़े ऊँचे-ऊँचे हरे-भरे घने पेड़ों को भी देख पा रहे थे I वहाँ अच्छी हवा भी लग रही थी I
समुद्री जहाज चल पड़ा I वृद्ध पिता कौवे ने उन्हें जहाज को छोड़ कर वापस किनारे चलने को कहा I पर सौभाग्य से कभी-कभार प्राप्त ऐसे परम आनंद के मौके को वे इतनी जल्दी छोड़ना न चाहते थे I न जाने ऐसा मौका फिर कब मिले? इस बड़े जहाज के माध्यम से दूर तक फैले नीले समुद्र की सैर का मजा लेना चाहते थे, जो आज तक न ले पाए थे I लाचारवश वह वृद्ध पिता कौवा भी उनके साथ देने के लिए उस बड़े जहाज के मस्तूल से न उतरा I कुछ ही समय में वह जहाज बड़ी तेज रफ़्तार से समुद्री-लहरों को चीरते आगे बढ़ते ही रहा I तट क्रमशः दूर और छोटे होते जा रहे थेI कुछ समय बाद ही अब तो तट भी न दिखाई दे रहा थाI

वृद्ध पिता कौवे ने उन्हें पुनः लौटने की बात कही, – “काँव-काँव-काँव, अब काफी दूर आ गए हो, इतनी ही दूरी तक उड़ते हुए वापस जाना पड़ेगा I वहीं तक दूरी या ऊँचाई अच्छी होती है, जहाँ तक से उसकी जमीन नजर आती है, उससे अधिक की दूरी और ऊँचाई अच्छ्ही नहीं I अब सभी लौट चलो I”
लेकिन बच्चे फिर भी न माने I कुछ दूर और चलते हैं I दूर-दूर तक नीला समुद्र उन्हें बहुत ही भा रहा था I अब तो ऊँची-ऊँची लहरों पर वह बड़ा जहाज भी काफी ऊँचाई तक उछलता था I उसी के साथ वे भी ऊँची-ऊँची पेंगें मारने लगे I लेकिन वृद्ध पिता कौवे का अनुभव बता रहा था कि अब जहाज पर रूकना खतर से खाली नहीं है I वह अपनी जाति के उड़ने की क्षमता से पूर्ण वाकिफ है I वह या उसके परिजन सम्पाती या जटायु के वंशज तो हैं नहीं, जो सूरज तक जाकर भी लौट आने की क्षमता रखते हों I वह अपने बच्चों को पुनः वापसी हेतु उड़ने को कहा I पर उन्हें तो आनंद आ रहा था I ऐसे परम आनन्द को वे कैसे छोड़ देवें? अभी नहीं छोड़ सकते हैं I पर उस क्षणिक आनंद के पर्दे पीछे छिपी भयानक काली विपत्ति को देख पाने वाली आँखे उनमें अभी कहाँ थीं?

“बस थोड़ी दूर और जाकर लौट चलेंगे I” – हर बार की तरह इस बार भी वे सभी वही बात दुहराएँ I वृद्ध पिता कौवा अब उन्हें डाँटते हुए कहा, – “अब तुम लोग वापस चलते हो, कि मैं तुम लोग को पीटना शुरू करूँ I” और सचमुच में वृद्ध पिता कौवे ने उन्हें डर दिखाने के लिए अपने पंख स्वरूप हाथों को उठाये उनकी ओर बढ़ा I जिससे वह स्वयं और डर कर या घबराकर उसके तीन बच्चे कौवें तो जहाज के मस्तूल को छोड़ दिए, पर दो हठी बच्चे कौवें वृद्ध पिता की बातों को गम्भीरता से न लिये I वे अब भी उस मस्तूल को न छोड़ें I

वृद्ध पिता कौवा और उसके तीन बच्चे कौवें तो जहाज के मस्तूल से हटते ही आकाश में उड़ने लगे, पर समय के इस छोटे से अन्तराल में ही वह जहाज बड़ी तेजी से आगे बढ़ गया और वे पीछे छूटने लगें I वृद्ध पिता कौवा अपनी सारी शक्ति संचय कर बहुत ही तेज झपटा मारते हुए आगे बढ़ने की कोशिश की, ताकि वह उस जहाज के उस मस्तूल को पुनः पकड़ लेवे, जिस पर सवार उसके दोनों हठी बच्चे कौवें एक अंतहीन और दिशाहीन पथ पर चले जा रहे थे और पर हर पल वे उससे दूर ही होते जा रहे थे I पुनः सारी शक्ति लगा कर चिल्लाते हुए कहा, – “काँव-काँव-काँव I बेटे! जहाज के मस्तूल से उडो, जल्दी उडो I नहीं तो देर हो जायेगी I” – पर लाचार पिता की आवाज समुद्र में उमड़ते लहरों तथा जहाज की यांत्रिक गम्भीर आवाजों में ही कहीं गुम हो जाती रही I इधर मस्तूल को छोड़े उसके अन्य तीनों बच्चे कौवें भी दिशाहीन आकाश में भटकने लगें, – “काँव-काँव-काँव I हम भटक गए I पिताजी, हमें बचाइये I”

वृद्ध पिता कौवा अब करे तो क्या करे? किन्हें बचाने की कोशिश करे? सभी उससे प्रतिपल दूर ही होते जा रहे थे I उसकी शक्ति भी उस द्रुतगामी जहाज तक पहुँच पाने में असमर्थ थी I जबकि जहाज के मस्तूल पर बैठे दोनों हठी बच्चें कौवें आगत विपति से निश्चित प्रतिपल क्रमशः दूर ही होते जा रहे थे I कुछ समय बाद ही वे अपने पिता की बूढी आँखों से जहाज समेत ओझिल हो गए I
वर्तमान परिस्थिति में अब वृद्ध पिता कौवे को अनंत आकश में भटकते अपने तीनों बच्चों को ही मार्ग दर्शन करके बचाना ही उसके वश में था I ईश्वर ऐसी स्थिति किसी के सम्मुख न उत्पन्न करें कि अपनी संतानों में से किसी को छाँट कर बचाना पड़े और किसी को मृत्यु की ओर जाते हुए लाचार देखना पड़े I

उधर दोनों हठी बच्चे कौवें बहुत ही प्रसन्न थे I आज वे अपने आप को आजाद महसूस कर रहे थे I अब किसी का कोई आदेश नहीं, किसी का कोई बंधन नहीं I बस अब तो वे अपने मन के मालिक थे I समुद्र में उठती लहरों को देख-देख कर दोनों रोमांचित हो रहे थे I जहाँ-तहाँ बड़ी-बड़ी समुद्री मछलियाँ उछलती नजर आयीं I दोनों में परस्पर विचार हुआ कि जम कर मछलियों के शिकार करेंगे और इस बड़े जहाज से समुद्र की सैर का मजा लेंगे I
लेकिन बिना आधार के सपने पूरे नहीं होते हैं I कल्पना और सपनें चाहे कितने ही सब्जबागी क्यों न हों, पर वे पेट तो नहीं भर सकते I जब उन्हें भूख लगने लगी, तब उन्हें बेचैनी-सी होने लगी I दूर-दूर तक विशाल समुद्र और उसमें उछलती-कूदती बड़ी-बड़ी मछलियाँ, जिन्हें पकड़ पाना उनके वश की बात ही न थी I इतनी दूर उड़ कर अब वापस अपने परिजनों के पास जा पाना भी तो सम्भव न था I
जहाज की तीव्र गति के कारण हवाएँ बहुत तेज लग रही थीं I थोड़ी-सी भी असावधानी उनके जमें पैरों को उखाड़ देंगी और फिर उन्हें न जाने किस शुन्यता में ले जायेंगी? अतः बहुत ही सावधानीपूर्वक दोनों बच्चे कौवें धीरे-धीरे ऊँचे उस मस्तूल से नीचे जहाज की सतह पर उतरे और भोजन की तलाश करने लगे I जहाज के अंदर उन्हें प्रचुर मात्रा में भोज्य-पदार्थ दिखाई तो दिया, पर वहाँ तक पहुँचे कैसे? भीतर में प्रवेश करने का कोई उपाय ही नहीं I शीशे और उस पर लोहे की मजबूत जालें लगी हुई थीं I

उन्हें जहाज के एक कोने में फेंके गए कई दिनों का बासी ब्रेड का एक टुकड़ा मिला I एक ने उस पर फुर्ती से अपनी चोंच मारी, थोड़ा-सा टुकड़ा अपने मुँह में लिया, -“उफ़ कितना खराब है I दुर्गन्ध आ रही है I उकाई आने लगी है I” पर इसके अलावे कुछ और तो था भी नहीं I अब याद आये वे पल, जब पिता उनके कहने मात्र से ही कहीं से भी कोई भोजन जुगाड़ कर उनके सम्मुख ला दिया करते थे और तब वे बिना परिश्रम के ही बड़े ही चाव से पेट भर लिया करते थे I लेकिन पिता के बिना अब वे क्या करें? न चाहते हुए भी दोनों नाक बंद कर उसी दुर्गन्धयुक्त बासी ब्रेड को खाएँ I पर चिंता बढ़ती ही जा रही थी I अब उन्हें अपनी माँ की कोमल और प्रेमभरी दामन, पिता के सुरक्षित छत्रछाया और अपने भाइयों की प्रेम-क्रीड़ाओं की बहुत यादे सताने लगीं, जिन्हें पुनः प्राप्त कर पाना असम्भव ही लग रहे थे I अब लौट जाने का जी चाहता था I लेकिन बहुत देर हो चुकी थी I उस अनजान अनंत दूरी से न तो लौट पाने की उनकी हिम्मत थी और न अब इस जहाज पर ही रह पाने का जोश ही था I विधाता ही जानें, उनके भाग्य में क्या बदा है?
कई दिनों तक वृद्ध माता-पिता कौवें सपरिवार समुद्र के ऊपर अपनी क्षमता के अनुकूल दूर-दूर तक उड़ान भरते रहें, शायद उनके वे दोनों बिछुड़े हठी बच्चे कौवें कहीं मिल जाएँ, पर सब व्यर्थ ही जाता रहा I समुद्र अपनी ऊँची-ऊँची लहरों और भीषण गर्जना शक्ति से इनका परिहास ही करते रहता था I पर वे क्या करे? माता-पिता को अक्सर अपनी सन्तान की जिद कारण ही तो जगत के परिहास को भी सहना ही पड़ता है I
समय की लहरों ने विगत घटनाओं को विचारों के रेत के नीचे दबा दिए I वृद्ध माता-पिता कौवें समुद्र के किनारे पड़े एक विशाल पत्थर पर विचारमग्न बैठे अपने बाकी बच्चों को समुद्र तट पर छोटे-छोटे जीवों का शिकार करते देख रहे थे I तभी सबसे छोटा वाला कौवा चिल्लाया, – “काँव-काँव-काँव I देख-देख लहरों पर बह कर भैया आया I”

“काँव-काँव-काँव I बापू! वह देखो, भैया किनारे पर आज आये हैं I”- सबसे छोटे बच्चे कौवे की चिल्लाहट से वृद्ध माता-पिता कौवें के ध्यान भंग हुए I एक ही झटके में माँ-पिता दोनों कौवें वहाँ पहुँच गए, जहाँ लहरों में बह कर आया था, उनका एक हठी पुत्र कौवा I उसके कोमल श्यामल चमकीले पंख क्षीण-भिन्न जर्जर हो गए थे I शरीर भी नमकीन पानी में फुल कर मोटा हो गया था I समुद्री जीव के आघात से उसका शरीर भी क्षत-विक्षत हो गया था I भयानक दुर्गन्ध भी दे रहा था I उससे पुनः न मिल पाने की बात को वे माँ-पिता कौवें अपने ह्रदय में नियोजित कर चुके थे, पर इस अवस्था में वह मिलेगा, इसकी कल्पना उन्होंने कभी नहीं की थीं I दोनों के ह्रदय विदीर्ण हो गए I उनके ह्रदय में उत्पन्न वेदना आँखों से अश्रूजल के रूप में बाहर समुद्र जल से भींगे रेत पर टपक पड़े, जिसे रेत ने तुरंत ही अपने में विलीन कर लियें I वृद्ध पिता कौवे की बोली लड़खड़ा गई, – “काँव-काँव-काँव I अब तुम आ गए I पता नहीं, दूसरा कहाँ रह गया? तुम दोनों की हठ ने तुम्हें हम सबसे सदा के लिए अलग कर दिया I”- मन की सारी वेदना इन दर्द भरी कुछ शब्दों में सिमट कर व्यक्त हो गईं I संध्याकाल तक कुछ ही दूरी पर समुद्री लहरों पर तैरता हुआ एक और कौवे का मृत शरीर दिखाई दिया, जो उनके दूसरे बिछुड़े पुत्र कौवे का अर्ध सड़ा-गला शव था I और अब वह बिन बुलाये ही किनारे की ओर उनके पास क्रमशः बढ़ता ही आ रहा था I

श्रीराम पुकार शर्मा,

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