हिंदी साहित्य को नई ऊंचाई पर पहुंचाने वाली कर्मठ महिला ‘शीला संधू’

हिन्दी साहित्य और प्रकाशन को नई ऊंचाइयां तक लाने वाली वरिष्ठ साहित्यकार शीला संधू ने 1 मई की सुबह अंतिम सांस ली। वे कई दिनों से बीमार चल रही थीं और जांच में उन्हें कोरोना का संक्रमण पाया गया। कोरोना महामारी की वजह से समाज के अन्य क्षेत्रों की तरह ही साहित्यिक जगत को भी अपूर्णीय क्षति हो रही है. शीला संधू वे साहित्यकार हैं जिन्होंने हिन्दी में रचनावलियों के प्रकाशन की शुरूआत और परंपरा स्थापित की थी।

24 मार्च, 1924 को जन्मी शीला संधू ने राजकमल प्रकाशन के जरिये हिन्दी भाषा भाषी समाज के साहित्यिक-सांस्कृतिक परिदृश्य में अभूतपूर्व रचनात्मक योगदान दिया। राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी शीला संधू को याद करते हुए बताते हैं कि हिन्दी में स्तरीय साहित्यिक पुस्तकों के प्रकाशन के जरिये भारत के शैक्षिक-सांस्कृतिक क्षेत्र को समृद्ध करने का श्रेय शीला संधू को जाता है. पुस्तक प्रकाशन और हिन्दी साहित्य के प्रति शीला जी का योगदान अविस्मरणीय हैै।

1964 में जुडीं राजकमल से अशोक महेश्वरी बताते हैं कि शीला संधू जी ने 1964 में राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक का दायित्व ग्रहण किया था और वे 1994 तक इस पद पर रहीं। तीन दशक के अपने कार्यकाल में उन्होंने राजकमल प्रकाशन की सम्मानित और मजबूत नींव पर विशाल भवन तैयार किया। उन्होंने बहुत से नामचीन और नए लेखकों को राजकमल से जोड़ा। आधुनिक रूप में राजकमल पेपरबैक की शुरुआत उन्होंने ही की थी।

हिंदी में रचनावालियों के प्रकाशन की नई शुरुआत शीला संधू ने ही की थी  ‘मंटो’ की रचनाओं का पांच भागों में संकलन दस्तावेज भी उनकी सूझ का परिणाम था। अशोक माहेश्वरी बताते हैं कि वे शीला संधू और निर्मला जैन के कारण ही राजकमल आ सके. वे बताते हैं कि शुरूआती दौर में राजकमल प्रकाशन का विकास एक प्राइवेट लिमिटेड संस्था के रूप में हुआ। यह किसी की निजी या पैतृक संपत्ति के रूप में नहीं है, बल्कि इसका स्वामित्व शेयरों के आधार पर निर्धारित होता है।

आरंभ में इसका स्वामित्व अरुणा आसफ अली के पास था। किन्हीं मुद्दों पर ओमप्रकाश जी से मतभेद होने पर वे इस प्रकाशन को लेकर कठिनाई महसूस कर रही थीं, तभी शीला संधू के पति हरदेव संधू ने उनसे इस प्रकाशन के अधिकांश शेयर खरीद लिए और शीला संधू ने प्रबंध निदेशक का पद संभाला।

शीला संधू उच्च शिक्षा प्राप्त तथा देश दुनिया देखी हुई महिला थीं परंतु हिंदी भाषा तथा हिंदी भाषी समुदाय से दूर होने के कारण कठिनाइयां स्वाभाविक थीं। ऐसे समय में राजकमल प्रकाशन से नामवर सिंह प्रकाशन (साहित्य) सलाहकार के रूप में जुड़ेे। स्वयं शीला संधू के शब्दों में “इस कठिन घड़ी में नामवर सिंह, जादुई वक्तृत्व एवं अध्यापन शैली के मालिक, की सलाहकार की भूमिका जितनी ही राजकमल के लिए जरूरी थी उतनी ही मेरे लिए।

आरंभ में लोगों को लगा था कि शीला संधू के राजकमल का प्रबंध निदेशक होने से यह प्रकाशन संस्थान बंद हो जाएगा और यहां संधू अपना पारिवारिक व्यवसाय मोटर पार्ट्स की दुकान शुरू कर देगी। परंतु अपनी कर्मठता और दृढ़ संकल्पशीलता से शीला संधू ने न केवल यह आशंका दूर की, बल्कि राजकमल की स्थापित प्रसिद्धि का विस्तार किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

1 × 5 =