शाफिया फरहिन की कविता “बिल्ली”

बिल्ली

काश…!
मैं तुम्हारी पालतू बिल्ली होती
मसरूफियत भरी ज़िंदगी में
मेरे लिए तुम वक़्त निकालती
कुछ काम, लेक्चर्स और मीटिंग के दौरान
एक बार ही सही तुम्हें
मेरा खयाल ज़रूर आता।

कभी छुट्टियों के दौरान
काम करते हुए मैं
तुम्हें यूँ ही निहारा करती
जैसे रोज़
तुम्हें काम पर जाने के लिए
तैयार होते निहारती हूँ

तुम्हारे लौटने के इंतेज़ार में
मेरे लिए डाले गए खाने को
यह सोच कर खत्म नहीं करती कि
तुम्हें आने में कहीं देर न हो जाए,

कभी-कभी तो तुम्हारे इंतेज़ार में
आँख लग भी जाती और
बीच में लिफ्ट की आवाज़ से भी
नहीं खुलती क्योंकि मैं
तुम्हारी आहट को पहचानती हूँ।
तुम्हारे नाज़ुक पैरों की
उस मधुर आवाज़ को जानती हूँ।

तुम्हारे आने पर मैं तुम्हें
यूँ हीं घंटों निहार सकती हूँ,
क्योंकि प्रेम से तुम्हें
अपनी स्मृति में
कैद करने के लिए
किसी कैमरे की ज़रूरत नहीं।

तुम्हारे कम्प्यूटर में काम करते वक़्त
तुम्हारी गोद में बैठ सकती हूँ
जब थक कर तुम लेट जाओ
तुम्हारे पेट पर सर रख मैं
घंटों लेट सकती हूँ
जब तक कि तुम डाँट कर मुझे
हटा न दो….!
मैं बाहर या बगल के कमरे में बैठ
तुम्हें घंटों निहार सकती हूँ….!

– शाफिया फरहिन

शाफिया फरहिन, कवयित्री

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *