किताबों से तब प्रेम करना
जब लगे तुझे व्यर्थ जीवन
किताबों से तब प्रेम करना ।
आरम्भ इसका दृश्य जैसा
अंत तो अध्यात्म है ,
पाप – पुण्य, ऊंच – नीच
इसी में समाविष्ट है ।
“गुप्त जी” के राष्ट्रीयता का
जीवंत इसमें चित्र है ,
उज्जवल चरित्र इसमें
“निराला” का व्यक्तित्व है ।
अध्यात्म से प्रेम करती
सदियों का इंतजार इसमें ,
“महादेवी” के अश्रु की
बहती है धार इसमें।
उम्मीदों के पंखुड़ी सा
खिलता गुलाब इसमें,
“पंत जी” भी कल्पना के
बुनते है जाल इसमें ।
आंसू के सौंदर्य संग
प्रसाद का प्रहार इसमें,
“दिनकर” के क्रोध का भी
मिलेगा टंकार इसमें।
जब लगे तुझे व्यर्थ जीवन
किताबों से तब प्रेम करना।
आरम्भ इसका दृश्य जैसा
अंत तो अध्यात्म है ,
पाप – पुण्य, ऊंच – नीच
इसी में समाविष्ट है ।
-रिया सिंह ✍🏻
स्नातक, तृतीय वर्ष, (हिंदी ऑनर्स)
टीएचके जैन कॉलेज
Very Nice