अधिकार भीख में नहीं मिला करतें हैं इन्हें अपनी योग्यता से हासिल करनी पड़ती है

सीतामढ़ी : अधिकार भीख में नहीं मिला करतें हैं इन्हें अपनी योग्यता से हासिल करनी पड़ती है और इसके लिए समाज में एकता की जरूरत होती है। उपरोक्त बातें हमारे संवाददाता को ‘पान एसोसिएशन’ के सर्वभारतीय अध्यक्ष शंकर कुमार दास ने कहीं। उन्होंने इस बातचीत के दौरान बिहार के बुनकर समाज जिसे की ‘पान समाज’ कहा जाता है कि आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक दुर्दशा का वर्णन किया और विशेष कर राजनीतिक दुर्दशा पर विस्तार से बातें की, प्रस्तुत है उनसे बातचीत के अंश…

एक सभ्य समाज के लोगों में सामाजिक और राजनीतिक चेतना का होना बहुत ही जरूरी है और बिहार की आबादी में लगभग 7 प्रतिशत जनसंख्या वाले हिंदू बुनकर समाज यानी ‘पान’ समाज देश की आजादी के 74 वर्षों बाद आज भी अपनी खुद की पहचान से भी वंचित है। आजादी के बाद पहली बिहार विधानसभा चुनाव में इस पान समाज के एक मात्र मुकुंद राम तांती निर्दलीय विधायक चुने गए थे। उसके बाद से इस समाज के दूसरे व्यक्ति चंद्रहाश चौपाल ने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में राजद के टिकट पर विधानसभा में प्रवेश किया। सांसद तो आजतक एक भी नहीं हुए हैं।

सभी राजनीतिक दलों की इस समाज के प्रति उदासीनता के अनेक कारणों में से एक कारण यह भी है कि पान समाज के लोग खुद भी इतने सारे कुनबों में बंटे हुए है और वैचारिक मतभेद आपस में इतनी गहरी है कि इस समाज के नेतृत्व कर्तागण आपस में ही आजतक संगठित नहीं हो पाये हैं। जिससे कि सभी बड़े राजनीतिक दलों की नजरों में इस समाज का कोई मूल्य नहीं है, यानी पान समाज जनसंख्या के आधार पर बिहार में काफी अधिक है लगभग 7 प्रतिशत परंतु खुदरा पैसों की तरह जिसे कोई बहुत मजबूरी में ही लेना चाहता है और उसी जगह रुपया कुछ कम भी हो तो सब लेना चाहते हैं।

जबकि पान समाज के ही उपजाति कोरी/कोली समाज से आने वाले यूपी से देश के प्रथम नागरिक महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी हैं। इसी समाज के आरएसएस से जुड़े कामेश्वर चौपाल आज राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के स्थाई सदस्य हैं। उन्होंने ही 1989 में राम जन्मभूमि में शिलान्यास किया था हालांकि भाजपा ने उन्हें 1991 में रोसड़ा लोकसभा के चुनाव में रामविलास पासवान के विरुद्ध उतारा था, फिर पार्टी ने उन्हें 1995 में बखरी विधानसभा से टिकट दिया था और 2014 में भाजपा ने सुपौल लोकसभा चुनाव में रंजीता रंजन के विरुद्ध उतारा था, परंतु दुर्भाग्य की तीनों बार ही उन्हें नाकामी हाथ लगी।

बिहार की जनसंख्या में डेढ़-दो प्रतिशत की आबादी वाले अन्य समाज के कितने ही विधायक, विधानपार्षद, लोकसभा और राज्यसभा सांसद हैं तथा विभिन्न आयोगों के अध्यक्ष और सभापति बने हुए हैं।
पहले पान समाज पिछड़ी जातियों (OBC) में गिनी जाती थी फिर 1 जुलाई 2015 को इसे अनुसूचित जाति (S/C) में डाला गया अर्थात आजादी के 68 सालों बाद पान जाति की कोई उन्नति नहीं हुई बल्कि पतन ही हुआ, परंतु आज भी सरकारी या गैर सरकारी आंकड़ों में पान समाज के नाम का कहीं भी उल्लेख नहीं किया जाता है तथा सभी बड़ी पार्टीयों द्वारा पान जाति के नेताओं को नजरअंदाज ही किया जाता है, खासकर चुनावों में टिकट देने के मामले में। जबकि आरक्षित सीटों पर कितने ही ऐसे सीट है जहां पर पान समाज के वोटर निर्णायक भूमिका मे हैं और अपनी-अपनी सुविधा और राजनीतिक प्रतिबद्धता के अनुसार अपने-अपने वोट देते आए हैं।

बिहार विधानसभा के लिए आरक्षित 38 सीटों में से पक्ष विपक्ष मिलाकर 38×2=76 यानी 76 सीटों में से कभी किसी चुनाओं में एक दो सीटों पर इस समाज के लोगों को मौका मिला है। हकीकत यही है कि आजादी के बाद से आजतक पान समाज को सभी पार्टियों द्वारा पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया। हालांकि सभी राजनीतिक दलों में पान समाज के सक्रिय कार्यकर्ता मौजूद हैं।

आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से पिछड़े इस समाज के पास स्वयं के इतने संसाधन भी मौजूद नहीं है कि अपनी पार्टी बनाकर तथा चुनाव लड़कर आने वाले दिनों के लिए अपनी पहचान बना सके।
बिहार का तो सदियों से इतिहास रहा है कि यहां की पानी और जवानी बिहार के किसी काम की नहीं बल्कि देश के दूसरे राज्यों के काम में आती अतः दूसरे समाज की तरह इस समाज के भी शिक्षित लोग पढ़ लिख कर नौकरियों में लगे हुए हैं और कम पढ़े लिखे लोग मजदूर बनकर दूसरे राज्यों में अपनी जवानी खत्म कर रहे होते हैं। ये लोग सिर्फ चुनावों के वक्त बिहार लौट कर अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं फिर अपनी अपनी कर्मभूमि की ओर लौट जाते हैं।

बाकी यहां रह रहे लोगों में ऐसा नहीं है कि इनके अंदर राजनीतिक चेतना बिल्कुल ही लुप्त है परंतु यह समाज आपस में इतना बिखरा हुआ है की राज्य की राजनीति में अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करवा पा रहा है। शंकर कुमार दास ने बताया कि इसी बिखराव को रोकने के लिए मैंने 2015 में एक संस्था ‘पान एसोसिएशन’ का गठन किया था। जिससे की पूरे भारत के विभिन्न प्रांतों में रह रहे बुनकर समाज यानी पान समाज के लोग, चाहे वह जिस किसी भी राजनीतिक विचारधारा के हो इस संस्था से जुड़कर समाज और देशहित में अपना योगदान दे सके और समाज के एकदम निचले पायदान पर जीवन यापन कर रहे लोगों की मदद कर सकें, ताकि भविष्य में पान समाज के लोग भी राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत कर सके।

अतः हमलोगों की संस्था ‘पान एसोसिएशन’ ने हमेशा से ही सामाजिक जागरूकता और एकता को बढ़ावा देने पर बल दिया है न सिर्फ बिहार बल्कि पूरे भारत मे। पान समुदाय को सामाजिक और राजनीतिक जागरूकता दिखाने का सुनहरा अवसर आने वाली बिहार पंचायत चुनाव है, जिसमे वो अपनी एकजुटता को साबित कर सकते है एवं राजनीति के एकदम निचले पायदान से ऊपर जाने की कोशिश कर सकते हैं। पान समाज के लोगों को यही हमारा संदेश है।

1 thoughts on “अधिकार भीख में नहीं मिला करतें हैं इन्हें अपनी योग्यता से हासिल करनी पड़ती है

  1. शंकर दास says:

    समाज को नए आयाम देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
    साथ ही कोलकाता हिंदी न्यूज़ को भी मैं आभार प्रकट करता हूं

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