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श्रीराम पुकार शर्मा, हावड़ा। प्रथम गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) देश की हजारों माताओं की गोद सूनी कर, हजारों बहनों व बेटियों के माँग का सिंदूर मिटा कर लाखों देशभक्तों के निःस्वार्थ बलिदानी लेकर 15 अगस्त, 1947 को हमारा देश भारत अंग्रेजों की दासता से आजाद हुआ था। इसके बाद ही अपने देश के चतुर्दिक विकास और समुचित क्रिया-कलापों के लिए 26 जनवरी, 1950 को सुदृढ़ भारतीय शासन और कानून व्यवस्था हेतु नये संविधान को लागू कर दिया गया।
26 जनवरी ‘गणतंत्र दिवस’ हम भारतीयों का एक प्रमुख राष्ट्रीय त्योहार है। इस विशेष राष्ट्रीय त्यौहार दिवस समारोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा भारतीय राष्ट्रीय ध्वज ‘तिरंगा’ को फहराया जाता हैं। जबकि विभिन्न राज्यों में उनके राज्यपालों के द्वारा राष्ट्रीय ध्वज को फहराया जाता है। फिर राष्ट्रीय ध्वज को सलामी दी जाती है। तदोपरांत ही विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम किये जाते हैं।
26 जनवरी, 1950 हमारे देश के लिए एक विशेष ऐतिहासिक दिवस है। इसी दिन अंग्रेज द्वारा निर्मित ‘भारतीय अधिनियम (1935) को हटाकर भारत का नया संविधान लागू कर भारत को एक स्वतंत्र गणराज्य के रूप में घोषित किया गया था। उसी दिन हमारे देश के लिए एक नया संविधान और विद्वपुरुष डॉ0 राजेंद्र प्रसाद के रूप में हमें प्रथम राष्ट्रपति मिले थे। इसी दिन देश का पहला गणतंत्र दिवस भी बहुत ही हर्षोंल्लास के साथ मनाया गया था।
पहला गणतंत्र दिवस मनाते हुए प्रथम राष्ट्रपति डॉ0 राजेंद्र प्रसाद ने नेशनल स्टेडियम (इरविन ग्राउंड) में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा को फहराया था। इसके बाद से ही प्रति वर्ष 26 जनवरी को पूरे देश में ही हर्षों-उल्लास के साथ गणतंत्र दिवस मनाया जाता रहा है। देश के पहले गणतंत्र दिवस पर तत्कालीन गवर्नमेंट हाउस में कई देशों के राजनयिकों सहित 500 से अधिक अतिथि थे, जिनमें इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णों हमारे मुख्य अतिथि थे।
26 जनवरी 1950 को कुछ ही पलों में देश को एक साथ ढेर सारी उपलब्धियाँ प्राप्त हुई थीं। सुबह 10:18 मिनट पर तत्कालीन गवर्नर चक्रवर्ती राजगोपालचारी ने भारत को एक स्वतंत्र गणराज्य घोषित किया और भारत का नया संविधान लागू किया था। तत्पश्चात 10.24 मिनट पर स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति हीरालाल कानिया ने विद्वपुरुष व सौम्य डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद को राष्ट्रपति पद एवं गोपनीयता की शपथ हिन्दी में दिलायी। नव प्रतिष्ठित राष्ट्रपति डॉo राजेंद्र प्रसाद ने उसी दिन ‘26 जनवरी’ को राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया।
उस ऐतिहासिक क्षण के गवाहों में निवर्तमान गर्वनर जनरल सी. राजगोपालाचारी, प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, उपप्रधानमंत्री सरदार बल्लभभाई पटेल, कैबिनेट मंत्री, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, भारत के ऑडिटर जनरल आदि मौजूद थे। इस अवसर पर पंडित नेहरू और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों को पद एवं गोपनीयता की शपथ भी दिलायी गई। दरबार हाल में हर्ष और उल्लास के अविस्मरणीय दृश्य उपस्थित हुए थे। देश के विभिन्न क्षेत्रों से बड़ी संख्या में आए लोग राष्ट्रपति भवन परिसर के आसपास एकत्र हुए थे।
दरबार हाल में पहली बार राष्ट्रीय प्रतीक (चार शेर मुख वाले अशोक स्तम्भ) को उस स्थान पर रखा गया। पहली बार ही वहाँ सिंहासन के पीछे मुस्कुराते बुद्ध की मूर्ति भी रखी गई थी। प्रथम राष्ट्रपति डॉo राजेन्द्र प्रसाद ने सभी उपस्थित लोगों को हाथ जोड़कर अभिवादन किया और हिन्दी एवं अंग्रेजी में संक्षिप्त भाषण दिया। फिर बाद में हजारों की संख्या में लोगों ने महात्मा गांधी की समाधि ‘राजघाट’ जाकर अपने प्यारे बापू को श्रद्धांजलि अर्पित की। दिल्ली समेत देश के अनेक स्थानों पर देश के प्रथम गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रभात फेरी भी निकाली गई और यह परंपरा आज भी जारी है।
फिर दोपहर 2. 30 बजे भारत के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉo राजेंद्र प्रसाद छः आस्ट्रेलियाई घोड़ों द्वारा खिंची जा रही बग्धी में सवार होकर राष्ट्रपति भवन (गवर्मेंट हाउस) से निकले और कनॉट प्लेस जैसे नई दिल्ली के इलाके का चक्कर लगाते हुए शाम को 3 बजकर 45 मिनट पर नेशनल स्टेडियम (इरविन स्टेडियम) पहुँचे। परेड स्थल पर राष्ट्रपति को 31 तोपों की सलामी दी गई थी। गणतंत्र दिवस के दिन मुख्य अतिथि बुलाने की परंपरा भी इसी दिन से शुरू हुई थी। इस प्रथम परेड में साधारण जनता भी शामिल थे। तब से लगातार इस दिन भारतीय सेना के तीनों अंग नए-नए करतब दिखाकर अपनी कार्यक्षमता का परिचय देते हैं। सच कहा जाय तो वास्तव में हमें अंग्रेज़ों से आज़ादी भी इसी दिन ही मिली थी।
पर 1950 और 1954 के बीच भारत में गणतंत्र दिवस समारोह के लिए कोई एक निश्चित स्थान नहीं सुलभ था। शुरू में इसे लाल किला, नेशनल स्टेडियम, किंग्सवे कैंप और फिर रामलीला मैदान में आयोजित किया गया था। साल 1955 में पहली बार राजपथ को गणतंत्र दिवस मनाने के लिए स्थायी स्थान के रूप में चुना गया। इस दिवस को मनाते हुए सशस्त्र सेना के तीनों बलों की टुकड़ियों द्वारा परेड की गई और तोपों की सलामी दी गई थी। तब से आज तक गणतंत्र दिवस राजपथ पर ही मनाया जाता है।
कालांतर में 1955 से हेलीकाप्टर से परेड में आये दर्शकों पर फूल बरसाने की परम्परा शुरू हुई। 1962 से परेड में शामिल होने के लिए 50 पैसे, तीन रूपये और पाँच रूपये का टिकट तय कर दिया गया। साथ ही हाथियों पर बच्चों को बैठने की शुआत हुई। 1973 से तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी ने इंडिया गेट पर स्थित ‘अमर जवान ज्योति’ पर जाकर श्रद्धांजलि देने की परम्परा की शुरूआत की थी, जो आज तक कायम है।
वर्तमान में गणतंत्र दिवस समारोह का आरंभ “अमर जवान ज्योति” पर अपने देश के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रप्ति और प्रधानमंत्री द्वारा शहीदों की श्रदांजलि देने से होता रहा है। तत्पश्चात् शहीदों की याद में दो मिनट का मौन रखा जाता है। इसके बाद प्रधानमंत्री इंडिया को 21 तोपों की सलामी दी जाती है। तत्पश्चात राष्ट्रपति कार में सवार होकर गणतंत्र दिवस मंच पर पधारते हैं। उनके साथ उनकी अंगरक्षक सेना की एक टुकड़ी सेनाएँ रहती है। उनके कर कमलों से राष्ट्रीय ध्वज ‘तिरंगा’ को फहराया जाता है।
उन्नत गगन में फहरते हुए राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा के समक्ष में इस दिन वीरों को अशोक चक्र, कीर्ति चक्र, परमवीर चक्र, वीर चक्र और महावीर चक्र से सम्मानित किया जाता है। तत्पश्चात गणतंत्र दिवस परेड प्रारम्भ होती है और वह राजपथ, इंडिया गेट से गुजरती हुई लाल क़िला तक जाती है। इसका मार्ग 8 किलोमीटर का है। विभिन्न राज्यों से आयी हुई विकास कार्य, संस्कृति और विविधता आदि सम्बन्धित झाँकियाँ प्रदर्शित की जाती हैं, जो सभी के मनमोह लेती हैं।
इस दिन पूरे भारत भर में ही विविध रंगारंग उत्सव मनाये जाते हैं। प्रत्येक राज्य में उनके राज्यपाल तिरंगा फहराते हैं और परेड की सलामी लेते हैं। यह राष्ट्रीय उत्सव तीन दिनों तक चलता है। 26 जनवरी के बाद 27 जनवरी को एन. सी. सी. कैडेट कई कार्यक्रम पेश करते हैं। अंतिम दिन 29 जनवरी को विजय चौक पर ‘बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी’ होती है, जिसमें बैंड भी शामिल होता है। इस प्रकार दुनिया के विशाल गणतान्त्रिक देश भारत का गणतंत्र दिवस समारोह का समापन होता है।
देश का 73 गणतंत्र दिवस की आप सभी को हार्दिक बधाई। जय हिन्द। भारत माता की जय।
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श्रीराम पुकार शर्मा,
सम्पर्क सूत्र – rampukar17@gmail।com