मदर्स डे स्पेशल : रामअशीष प्रसाद की कविता – “माँ के आँचल में”

माँ के आँचल में

माँ तुम्हारी आँचल की छाँव में
जो सुख है वो कहीं और नहीं,
तुम्हारी बाँहों के पालने में
जो निंदिया है वो कहीं और नहीं।
तुम्हरी दुआवों में जो शक्ति है
वो किसी ईश्वर में नहीं,
तुम्हारी बोली में जो मृदुलता है
वो किसी गीत में नहीं।
माँ तुम अजन्मा हो,
शक्ति हो,
सार हो,
विस्तार हो,
मेरे जीवन की सबसे बड़ी ताकत हो।
जिसकी कोख मे शुरू हुआ था जिन्दगी का सफर,
आज उस गोद मे खोली थी आँखें पहली बार,
उनके प्यारे हाथों ने संभाला मेरा पूरा तन।
माँ ने ही तो बोलना,चलना,सम्भलना सभी सिखाया मुझे।
उसी ने हमारी खुद से करायी थी पहचान,
दुनिया का समना करना भी उसी ने सिखाया,
जनम से ही दर्द से शुरु हुआ था रिश्ता हमारा,
इसीलिए तो हमें कष्ट होने पर पहले आता है माँ शब्द।

इसलिए कहा गया है-
माँ का कर्ज नही चुका सकता
कभी कोई इस दुनिया में,
भगवान से भी बड़ा है
मां का दर्जा इस दुनियाँ में।

    -रामअशीष प्रसाद ✍🏻

शोधार्थी, कलकत्ता विश्वविद्यालय

 

 

 

 

 

माँ की याद में..

घर के उलझे माहौल को भी
खुशनुमा बनाना जानती है,
मेरे चेहरे पर आई एक छोटी
शिकन को भी पहचानती है,
तकलीफे जब कभी मन को
बोझिल-सी कर जाती हैं,
सुकून की वो थपकियाँ और माँ की गोद
आज भी काम आती हैं !!
–श्वेता सिंह✍🏻

 

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