राजीव कुमार झा की कविता : रविवार के दिन

रविवार के दिन
राजीव कुमार झा

सुबह से
आकाश में ठंड
धूप के आने का
इंतजार करती
सारे घरों के आसपास
आकर ठहर गयी
रविवार के दिन
बच्चे पतंग उड़ाते
मौज मस्ती मनाते
रेवड़ियां मूंगफली खाते
दोपहर में खेत
खलिहानों में आती
धूप से बतियाते
शाम में तेज होती
ठंड से बचते
रजाई में रात भर
दुबके रहेंगे
वे अगली सुबह सवेरे
जगकर
ठंडी हवा में फिर
घूमने निकलेंगे
उससे हंसकर
धूप के बारे में पूछेंगे

राजीव कुमार झा, कवि/ समीक्षक

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