राजीव कुमार झा की कविता : जंगल

।।जंगल।।
राजीव कुमार झा

कस्तूरी की गंध
महकती
हिरनी उसे ढूंढने
कड़ी धूप में
मारी-मारी फिरती
इसे देखकर चिड़िया
हंसती
वह सूरज को
हंसकर कहती
सुबह यहां उजाला
फैला
धरती का रंग बना
मटमैला
खुशबू तो फूलों से
आती
घर की मुंडेर पर
आज जलाओ
दिवाली की दिया बाती
नदी किनारे
जंगल को कस्तूरी
महकाती

Rajiv Jha
राजीव कुमार झा, कवि/ समीक्षक

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

seventeen − four =