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।।दोस्ती के दिन।।
राजीव कुमार झा
जिंदगी के ख्वाबों में
यह हसीन सुबह
नयी रंगत से मन को
सजाती
इतने पहर से दोस्ती
निभाती
शहर के पार्क में आकर
कभी
मन की बातें बताती
वसंत के दिन आते ही
यह ठंड
खत्म हो जाएगी
नये स्पंदन से
तुम्हारा मन भर उठेगा
कोयल सुबह कूकने
लगेगी
सुबह याद आती
सूरज जादू के खेल से
बाहर आकर
हम दोनों के बीच
गुम हो गया
ढलती रात में
तुम जगकर
उसे समुद्र की
लहरों पर मचलता
देखती
नींद में अक्सर
उससे लिपट जाती
उस दिन से
तुम निरंतर चुप हो
वह प्यार और सबका
इंकार
दोस्ती निभाते
सारा वक्त बीत गया
तुमने अब तक
मन से कुछ भी नहीं कहा
दिनभर अकेला
जो राह देखता रहा
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