।।बीता पहर।।
राजीव कुमार झा
जलती किताबों को
बुझाकर
बच्चे घर लौट आये
उस बीते पहर की
बात
अरी सुंदरी
कोई तुम्हें कैसे बताएं
उन्हें सिर्फ पोथियां
कोई कैसे कह सकता
प्रेम की बातें बच्चों को
क्या कोई समाज में
कहता
किताबों में उनकी
जिंदगी का जादू
बसा
प्रेम से ही तुमने उसे
बच्चों के लिए रचा
नदी पहाड़ झील
मैदानों में आकर
बच्चे बनाते
पेड़ पौधों की तस्वीर
बच्चे फूलों को देखने
फुलवारी में आते
शाम के आकाश में
रंग-बिरंगी पतंग
उड़ाते
बच्चे जिंदगी में
गुल खिलाते