कैलाश खेर की महाआरती ‘जय श्री महाकाल’ का लोकार्पण 11अक्टूबर को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे

काली दास पाण्डेय, । विश्वविख्यात सिंगर कैलाश खेर भारतीय शास्त्रीय संगीत की शक्ति और इसकी सदियों पुरानी विरासत के प्रचार व प्रसार हेतु आज के युवाओं के लिए एक आध्यात्मिक भेंट महाआरती ‘जय श्री महाकाल’ लाये हैं। यह आध्यात्मिक भेंट है जो धीरे-धीरे श्रोताओं को अपनी जड़ों की ओर वापस जाने, अपने परिवारों और सुंदर परंपराओं के साथ फिर से जुड़ने की याद दिलाता है ताकि यह पता लगाया जा सके कि वे वास्तव में कौन हैं। ‘जय श्री महाकाल’, आध्यात्मिक गीत रोमांचित करेगा, श्रोताओं को प्रेरित करेगा और भारतीय संस्कृति के बारे में अधिक जानने के लिए जिज्ञासा को प्रज्वलित करेगा।

यह श्रोताओं के दिलों और दिमागों में ज्ञान और सच्चाई के दीपक जलाएगा ताकि वे अपने भीतर की अंधकार की शक्तियों को दूर कर सकें और अपनी सहज प्रतिभा और अच्छाई को चमकने दें। कैलाश खेर माननीय प्रधान मंत्री के संयुक्त प्रयासों और मध्य प्रदेश उज्जैन स्मार्ट सिटी, मध्य प्रदेश संस्कृति/पर्यटन विभाग, उज्जैन महाकाल मंदिर ट्रस्ट उज्जैन के प्रयास को संगीतमय समर्थन देते हैं, जो शहर को फिर से जीवंत करने के लिए किया जा रहा है, जो आगे महाकाल शहर की पौराणिक कथाओं का प्रतिनिधित्व करता है। क्षिप्रा नदी के तट पर बसा उज्जैन शहर और देवताओं के वास को ‘जय श्री महाकाल’ में गीत व संगीत के जरिये खूबसूरती से प्रदर्शित किया गया है।

कैलाश खेर की नवीनतम प्रस्तुति “जय श्री महाकाल” के ऑडियो और वीडियो का लोकार्पण प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा पूरे देश वासियों के लिए 11 अक्टूबर को किया जाएगा। ‘जय श्री महाकाल’ की विस्तृत चर्चा करते हुए कैलाश खेर कहते हैं “भारत की आध्यात्मिक संपदा और पौराणिक कथाएं बहुत समृद्ध और विशेष हैं। इस युग में, “जय श्री महाकाल, हमारी संस्कृति का जिक्र करना मनोरंजन के साथ-साथ आज के जीवन में एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है।

भारत में बारह ज्योतिर्लिंग हैं, लेकिन किसी को समर्पित स्तुति का कोई गीत नहीं है। मैं बचपन से ही शिव का उपासक हूं, भोलेनाथ ने ही मुझे अध्यात्म के माध्यम से संगीत में भेजा है। महाकाल पर लिखना, गाना, संगीत बनाना, जप करना किसी तपस्या से कम नहीं है, क्योंकि महादेव बचपन से ही मेरे खून में बहते हैं, जब भी मैं उनकी महिमा को गाना चाहता हूँ तो मैं बस अपने दिल में झांकता हूं, अर्थात ध्यानी होकर, समाधि में रहकर… और सब कुछ बहता है। शिव स्वयं ध्वनि की तरह बहने लगते हैं”

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