अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर हिन्दी के साथ कवियों ने क्षेत्रीय भाषा का परचम लहराया

कविता में जो ताकत होती है वह भाषण में नही होती है : जगदीश मित्तल

मची विभिन्न भारतीय मातृभाषाओं की धूम
भाषा एक जीवंत संस्कृति है। हम परिवेश से मातृभाषा सीखते हैं – डॉ. ऋषिकेश राय

कोलकाता, 22 फ़रवरी। “कविता में जो ताकत होती है वह भाषण में नही होती है। कविगण भाषण को छोटी सी कविता में समेट कर उसे सारगर्भित बना देते हैं- ये उद्गार हैं राष्ट्रीय कवि संगम के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगदीश मित्तल के जो कि राष्ट्रीय कवि संगम पश्चिम बंगाल के अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के शुभ अवसर पर श्रीराम वन गमन पथ काव्य यात्रा को समर्पित आभासी कवि सम्मेलन में बतौर प्रधान अतिथि के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने आगे कहा कि माँ का महत्व सबसे बड़ा है। उसके सृजन के बिना हमारा कोई अस्तित्व नहीं है। माँ -मातृभूमि – जगत जननी का कोई मोल नहीं।
राष्ट्रीय कवि संगम पश्चिम बंगाल के प्रांतीय अध्यक्ष डॉ. गिरिधर राय की अध्यक्षता में, विभिन्न भाषाओं के विशिष्ट विद्वत विभूतियों एवं कवियों द्वारा अपनी-अपनी मातृभाषा में सरस कविताओं का वाचन किया गया। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 2022 की थीम – ‘बहुभाषी शिक्षा के लिए प्रोद्यौगिकी का प्रयोग- चुनौतियाँ का सामना और अवसर प्रदान करना’ की चर्चा करते हुए प्रांतीय अध्यक्ष ने उसके महत्व पर प्रकाश डाला।

राष्ट्रीय महामंत्री डॉ. अशोक बत्रा और छत्तीसगढ़ से मल्लिका रुद्रा विशिष्ठ अतिथि के रुप में उक्त कार्यक्रम में उपस्थित थे। कार्यक्रम का श्रीगणेश रीमा पांडेय द्वारा भोजपुरी में मधुर सरस्वती वन्दना से हुआ। प्रांतीय उपाध्यक्ष डॉ. ऋषिकेश राय जी ने कहा कि – “भाषा एक जीवंत संस्कृति है। हम परिवेश से मातृभाषा सीखते हैं, वह माता के दूध के समान होती है जो कि हमारे संपूर्ण व्यक्तित्व में हवा और पानी की तरह व्याप्त होते है। डॉ. अशोक बत्रा जी ने मातृ भाषा का महत्व बताते हुए – हरियाणवी कविता – “जब से ण पर न कायम हो गया है, हर शब्द मुलायम हो गया है” एवं मुलतानी भाषा की कविता – “राम प्यारी बोलीं मैं कूँ खड़ी थी चुणावाँ बीच” ने दर्शक दीर्घा का मन मोह लिया।

मल्लिका रुद्रा की हिन्दी कविता – “पढ़ सको तो पढ़ना मेरी अर्जियाँ,” संस्था के राष्ट्रीय सलाहकार प्रख्यात कवि राजेश चेतन की भाव पूर्ण प्रस्तुति को लोगों ने खूब सराहा। स्वागता बसु की – तुम पीत पर्ण पतझड़ में नव किसलय से मेरे प्राणप्रीत, डॉ. अपराजिता डेका की जीवन दर्शन पर असमियां कविता, अनिमेष चौधरी और विश्वरुप दास की बंगला भाषा पर भावपूर्ण कविता ने दिलों को झकझोर कर रख दिया। मनोरमा झा की वसंत पर लुभावनी कविता, तेलुगु भाषा के कवि चंद्र शेखर जामालावालाका की – “वह संतान व्यर्थ है जो मातृ भाषा की इज्जत ना करें और हिमाद्रि मिश्रा की – “गाम भेलै सुनसान” मैथिली कविता सुनकर दर्शक वाह! वाह! कर उठे।

तरुण कांति घोष की बंगला कविता, टीकाराम गोपाल भित्रीकोटी की नेपाली कविता, सूर्य बसु की बंगला कविता और डॉ. अहमद मेराज की उर्दू कविता सारे हिन्दुस्तानी हैं -ने श्रोताओं का दिल जीत लिया। दहेज प्रथा पर चोट करती रीमा पांडेय की भोजपुरी गीत और “पुकार” गाजीपुरी की भोजपुरी भाषा पर भोजपुरी गजल ने कार्यक्रम में चार चाँद लगा दिए। डॉ. गिरिधर राय की- कम दहेज पर बिन दुल्हन के लौट गयी बारात, कहूँ मैं किससे मन की बात ने सबका मन मोह लिया। कार्यक्रम का संचालन बलवंत सिंह गौतम ने बड़ी कुशलता से किया। कार्यक्रम का समापन स्वागता बासु ने धन्यवाद ज्ञापन से किया।

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