सविता शाह की कविता

एक दिन बचपन की तरह,
ये जवानी भी निकल जायेगी!
और! हम उम्र के उस दहलीज पर पहुंचेंगे,
जहाँ पर सिर्फ सांसे रह जायेंगी!
अपनी जिम्मेदारियों के बीच,
कुछ पल जी लो जरा।
कुछ ख्वाहिशें पूरी कर लो,
कुछ मन का कर लो जरा!!

कभी मना लो अपनो को,
कभी अपनो से मान जाओ।
कभी वक़्त दो अपनो को,
कभी खुद को भी जान जाओ
अंत मे सिर्फ काश रह जायेगा?
जब ये वक़्त निकल जायेगा!
छूट जायेगा सांसों का साथ,
ये जीवन फिर ना मिल पायेगा!!

सबिता शाह

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