।।हम आंखवाले।।
संजय जायसवाल
इन दिनों आसमान में
मायावी अंधेपन की चमक फैल गई है
चारों ओर
अंधे मेग्निफाइंग चश्मा पहन
सूक्ष्म से सूक्ष्मतर पर
रखते हैं कड़ी नजर
और आंखवाले
अंधों की सेवा में हैं रत
और अंधे भी हैं मस्त
इन दिनों
आंखवाले ढो रहे हैं
अंधों को बेहिसाब
अंधों ने बचा लिया है
सत्ता,राज्य और धर्म
सौंप आंखवालों को
पद, परमिट और पुरस्कार
आंखवालों को अब नहीं दिखता
नंगे पांव भागती जिंदगी
नहीं दिखता
टीवी के टॉक शो के बीच
जायकेदार मेनू की तरह
परोसे गए डर और भूख से रिरियाते लोगों के टूटते सपने
नहीं दिखता
बूढ़े मां-बाप की दवा की पर्ची
नहीं दिखता
जवान होती बहन का पीलापन
नहीं दिखता
बच्चों के चेहरे पर आंसू की लकीरें
नहीं दिखता
स्लेट जैसा स्याहपन
जो घुल गया है
उस स्त्री के जीवन में
जो रोज रात को चांद से बतियाती है
और सुबह जुत जाती है
नाद और खेत से लेकर कारखानों तक
और हम आंखवाले
जाति, धर्म और संस्कृति का रक्षक बन
कोसते हैं धृतराष्ट्री सरकार को