राजीव कुमार झा की कविता : ध्रुवतारा

।।ध्रुवतारा।।
राजीव कुमार झा

दोस्ती से भी
बड़ी जो चीज़ है
यारो!
भरोसा
तोड़ कर
मत अभी
पुकारना
उसको!
जिंदगी
गम में जब
अकेली
कहीं डूब जाती
याद आते
अपने पराये
लोग देख कर
मुंह मोड़ लेते
भरोसा
देखकर कहता
कभी फिर
अपनी मुलाकात
होगी
इंतजार
कोई किसी का
कहां करता
खामोशियों में
सदा रहता
नियति को
छोड़ कर
अब सिर्फ
शेष बच गयी
जिंदगी!
यह कहीं
पहेली बनी
मानो धूल में
हवा हो कहीं
पानी सी सनी
गर्मी की
रातों का
बवंडर!
आग उगलता
समंदर!
सबका भरोसा
रोज टूटता
कहीं अंदर
समय का इशारा
आदमी
वक्त का मारा
बादल से
बारिश में
कौन हारा
रात में पूछता
ध्रुवतारा!

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