प्रतिभा जैन की कविता : वीर

।।वीर।।

ये आंखों ने इशारे करना छोड़ दिया।
वीर तुम्हारी भक्ति से अपने को जोड़ लिया।
दोस्ती कर ली वीर तुम्हारे चेहरे से
दोस्तो में अब वक्त बर्बाद नहीं करती।
चाय की आदि थी पीज़ा मेरी जान थी
लत लगी मंदिर की
घर में चैन न पाई थी
छोड़ सारी गली
जिनवाणी की शरण पाई थी।
आंखे जब खुली मेरी
वीर तुम्हारे द्वार आई थी।prativa jain

प्रतिभा जैन
टीकमगढ़ मध्य प्रदेश

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