“जिंदगी“
बहुत कुछ लिख-लिख कर मिटाया
है मैने,
ठीक ना होने पर भी
ठीक बताया
है मैने,
बात-बात पर
अपने दिल को
बहलाया है मैने,
अपनी सोच में
ही खोकर,
ना जाने कितनी
रात जाग-जाग
कर बिताया
है मैने,
कोई समझेगा नहीं
ये हाल मेरा,
बस इसी फिक्र में सबसे सब कुछ
छुपाया है मैने…!!
चलो हंसने की कोई वजह ढूढते हैं,
जिधर ना हो कोई गम,
वो जगह ढूढते हैं,
बहुत उड़ लिए ऊंची
आसमानों में,
जमी पर ही कहीं
सतह ढूढते हैं,
छूटा संग कितनों का
इसी जिंदगी में,
आओ उनके दिलों
का गिरह ढूढते हैं,
बहुत वक्त गुजरा
भटकते हुए इस अंधेरे में,
आओ अंधेरी रात की
हम सुबह ढूढते हैं..!!
डॉ. राम बहादुर दास
सलाहकार,
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग,(UGC)
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