कवि. हीरा लाल मिश्र की कविता : बेटी आई है

बेटी आई है।
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पोपले मुख पर मोटे लेन्स का चश्मा
झुर्रियों से भरा शरीर
थरथराते हाथों से पीतल की थाली बजाती
दादी अम्मा ने
खुशी का इज़हार किया
धुँधली आँखों से निकली जल-धारा
तन-मन की भिगो गई
प्रसन्नता का पारावार न था
क्योंकि – बहरे कानों ने
पोते के जन्म का संवाद सुना ।
अचानक –
महाभूचाल के आगमन के भय की भाँति
थाली की झन्नाहट
दिशाओं की खुशियों की खुशियों को-
लील गई
क्योंकि – घर की मायूसियों  के बीच
कान में किसी ने जोरों से कहा –
” बेटी आई है ” ।
धम्म से बैठी दादी अम्मा
हाय रे मेरी तकदीर
फिर आई राकसिन
बड़बड़ाई दादी अम्मा ।
प्रसूति-गृह में लेटी सद्य: प्रसूता
सुख-सम्पन्ना जननी
नवागता के गुलाबी मुखमंडल को निहार
आंतरिक सुख में – विभोर थी।
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* कवि. हीरा लाल मिश्र ।

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