रीमा पांडेय की कविता : अपना कौन?

अपना कौन?

जो निकट रहे, षड्यंत्र करे
पल पल जीवन का अंत करे
उत्साह को भी संत्रस्त करे
गमो को तेरे अनंत करे
क्या वह अपना कहलाता है?

जो इतना भी कह न सके
मैं हूँ तेरे साथ खड़ा
मैं तेरा विश्वास बड़ा
हाथ मैं तेरा थामूॅगा
तुझको मैं अपना मानूॅगा
क्या वह अपना कहलाता है?

जब हृदय शोक-संतप्त रहे
दुख का न कोई अंत रहे
फिर भी वो मुस्काता हो
दुख पर तेरे इठलाता हो
संवेदना भी न जतलाता हो
क्या वह अपना कहलाता है?

वह खुशियों में न साथ रहे
दुख में तू सदा अनाथ रहे
जब हृदय विकल हो जाता हो
कोई राह नजर न आता हो
दुख से तेरे अनजान रहे
क्या वह अपना कहलाता है?

जग के निर्मम आघातो से
जीवन के झंझावातो से
तू टूट -टूट कर बिखर रहा
प्राण भी तन से निकल रहा
फिर भी न वह मुखर रहा
क्या वह अपना कहलाता है?

जब तू जाता है आश लिए
पर वह आता परिहास लिए
जख्मो पर नमक लगाता है
हृदय के पास न आता है
मन को तेरे बिखराता है
क्या वह अपना कहलाता है?

रीमा पांडेय

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