“कल फिर आऊंगा”
जरा डूबते सूरज को देखो
कह रहा है
मैं अभी चूका नहीं हूं
कल फिर लौटूंगा
उसी तेज के साथ
उसी ऊर्जा से भरपूर
जैसे आज भोर में मैं
आया था
नई रोशनी लेकर
नई उम्मीदों से लकदक
सारे संसार के लिए
अपने हिस्से की रोशनी
लेने के लिए
तुम रहना तैयार
जिस तरह एक बीज
दबा पड़ा रहता है
धरती के भीतर
अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत
जैसे कोई नट जितनी कुशलता से
अपनी कलाबाजी दिखाता है
एकलव्य की तरह स्वाभ्यास
तुम्हें ही करना है
अपनी लगन, निष्ठा और
परिश्रम का आंचल
जितना बड़ा फैलाओगे
उतनी ही रोशनी
पाने का अधिकार
तुम्हारे हिस्से आएगा।
श्याम कुमार राई ‘सलुवावाला’
बहुत ही उम्दा सृजन…👌👌👌👌