“आखिर क्यों जुल्म सितम सहते हो”
भई ये क्या गज़ब करते हो
तुम सच को सच कहते हो।
मुफलिसी में गुजारते हो दिन
ताज्जुब है फिर भी हंसते हो।
अमां छेड़ो बातें आसमानों की
ये क्या ज़मीं की बातें करते हो।
जिंदगी बाजी है ताश की मेरे दोस्त
बुरे पत्तों के आने से क्यों डरते हो।
अरे लानत है तुम पर ‘श्याम’
आखिर क्यों जुल्म सितम सहते हो।