”जुगनू भी अंधेरा दूर करता है”
वक्त ही नहीं बदलता है
आदमी भी तो बदलता है।
कल जो भीख मांग रहा था
आज आका बना फिरता है।
अन्नदाता है जो देश का
रोज जीता है मरता है।
फकत एक तबस्सुम के लिए
फूल कांटों में खिलता है।
पाना हो जिसे नामुमकिन
दिल उसी के लिए मचलता है।
मंजिल है उसके कदमों में
जो अंगारों पर चलता है।
ज़रूरी नहीं सूरज बनना ‘श्याम’
जुगनू भी अंधेरा दूर करता है।