मुल्क मंजरी भगवत पटेल की कविता

मुल्क मंजरी
भगवत पटेल

आया है ऋतुराज वसंत
लेकर हर्षोल्लास अनंत।

इतराती है धरा सुहानी,
चूनर ओढ़े धानी धानी।
हंस-हंसकर नभ सुना रहा है,
कोई अमृतमयी कहानी।
धूप सुनहरी विहस-विहस कर
करती है सर्दी का अंत।
आया है ऋतुराज वसंत..।।1।।

कली-कली देखो हरषाई,
चली मनोहर मृदु पुरवाई।
शुक-पिक के मधुरिम स्वर सुनकर,
विरहिन और अधिक मुरझाई।
चढ़ता यौवन मदन सताए,
और हुआ परदेसी कन्त।
आया है ऋतुराज वसंत..।।2।।

पशु पक्षी मस्ती में घूमें,
भंवरा ज्यों मद पीकर झूमे।
मंद मंद मुस्काकर सूरज,
ज्यों धरती का मस्तक चूमे।
देखो ज्ञानदात्री आई,
हिय के तम का करने अंत
आया है ऋतुराज वसंत..।।3।।

ऋतु बसंत की पावन वेला पर,
करना है संकल्प यही।
प्रजातंत्र मजबूत बनाएं,
आओ चुने विकल्प सही।
शत प्रतिशत मतदान करें बिन,
देखे वर्ण धर्म और पंथ।
आया है ऋतुराज वसंत..।।4।।

तरु से गिरते पीले पत्ते,
पतझड़ में मैंने देखे हैं।
जैसे दिन जीवन के जाते,
हम भी तो इनके जैसे हैं।
यही अनोखी रीत जगत की,
कहते साधु सिद्ध अरु संत।
आया है ऋतुराज वसंत..।।5।।

भगवत पटेल, कवि

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