ममता सिंह भोक्ता की कविता : “माथे की बिंदी”

माथे की बिंदी

बरामदे में टांगे,
पुराना आईना,
और वही कोने में,
तुम्हारी साड़ियां,
शादी के पहले,
धान काटती अब भी,
मजदूरी करती,
अपना मन कैसे बहला लेती,
जंगलों के बीच पत्तों के झुंड,
गीली मिट्टी में उगे,
सूरज के किरणों से लदे जमीन,
को देखती होगी,
रात भर जब सो ना,
पाती तो सुबह,
मिट्टी के चूल्हे का इंतजार,
जिसे तुमने ठंडे होने के,
लिए छोड़ा था, जैसे अपने,
को न खटखटाती कभी,
चेहरा पीला पड़ गया,
जैसे लोन के खाते पर तुम्हारे,
नाम का पीला रंग,

ममता सिंह भोक्ता

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

three × 4 =