“वीरवधू की टीस“
तुम्हारे बारे में मैं अब क्या कहूँ
दिल की बातें मैं अब किससे कहूँ,
शहीद होकर मुझसे दूर चले गये हो
तुम्हें बहादुर कहूँ या डरपोक कहूँ
माना भारतमाता की सपूत बन गए हो
पर मेरी दृष्टि में डरपोक बन गए हो,
अपने गृहस्थी की कर्तव्यों को न निभाकर
मंझधार में मुझे छोड़कर चले गए हो ।
तुम्हारे नाम के बेहिसाब सम्मान मिले है
औरों से भी बेपनहा प्यार मिले है,
न जाने इसके बावजूद भी ऐसा लगता है
इन खुशियों में भी तुम्हारे कमियाँ मिले है।
मैं जी रहीं हूँ ज़िन्दा लाश बनकर
मैं हँस रहीं हूँ गमों का साज बनकर,
यहीं है मेरी असली जीवन संग्राम
बस खुद से लड़ रही हूँ एक योद्धा बनकर।
गोपाल नेवार, गणेश सलुवा ।