गोपाल नेवार की कविता : “आहत पिता”

“आहत पिता” 

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सभी पिता की भांति
आशा की किरण
मेरे मन-प्रांतर
में भी फूटी-
कि मेरा पुत्र बुढा़पे में
मेरी धुंधलती आँखों का
प्रकाश बनेगा,
मेरे डगमगाते कदमों का
सहारा बनेगा ।

पर व्यर्थ रहा
उसके प्रति
मेरी धारणा,
एक दिन जब
उसकी डायरी
मेरे हाथ लगी
तो मेरे मोह-पाश को
काट दिया।

जिस पर मेरी
दवा के खर्च
खान-पान के खर्च का
ब्योरा लिखा ।

मेरे होश ठिकाने लगे
हृदय के हजारों टुकडों पर,
स्वयं के प्रति
घृणा के मेघ छाए।

मेरी आहत आत्मा
और भी आहत हुई
जब उसने लिखा
बूढ़े बाप का ढ़ोना
अब है मुश्किल ।

मुझे किसी वृद्धाश्रम में
भेजने की योजना के पहले
निराश मन से
एक पत्र लिख डाला ।

छोड़े जा रहा हूँ
अब मैं यह घर
पर याद रखना
तुम्हारे भी दो छोटे-छोटे
बच्चें हैं मेरे पुत्र ।

गोपाल नेवार, गणेश सलुवा

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