डॉ निर्मला राजपूत की कविता : हां मैं हिंदुस्तानी नारी हूं

हां मैं हिंदुस्तानी नारी हूं
हां मैं हिंदुस्तानी नारी हूं समाज के अत्याचार की मारी हूं
हां मैं हिंदुस्तानी नारी हूं……
मैं ही सीता बन हर युग में अग्नि परीक्षा देती रही हूं
मैं ही द्रौपदी बन हर युग में जुए में हारी हूं…..
हां मैं हिंदुस्तानी नारी हूं
मैंने ही दर्द को सह कर उस अंश को जन्म दिया है जिसने आगे चलकर मुझको ही रुसवा किया है
मैंने ही मां बहन पत्नी बेटी बन घर को सजाया है
मैंने ही मनुष्य को उन्नति की राह पर आगे बढ़ाया है
जुल्मों को सह कर भी मैं ही मुस्कराई
शोलो पर जलकर भी जाग की रस्में निभाई
कभी दहेज के नाम पर मैं ही फांसी पर गई लटकाई
कभी मेरे अपनों ने ही मेरी अर्थी है सजाई
पर कब तक
पर कब तक में यूं ही छली जाती रहूंगी
कब तक दूसरों के सांचे में यूं ही ढली जाती रहूंगी
अब वक्त आ गया है जब मैं भी दुर्गा बन जाऊं
दूर कर धर्म के अंधेरे जग में रोशनी फैलाऊ
आज वक्त है इस दुनिया को कुछ करके दिखलाऊ तोड़कर रूढ़ियों की जंजीर खुद को जो आजाद कर पाऊं
छीन लूं दुनिया जहान से जो भी हक मेरा है
निकलूं उन अंधेरों से जिन्होंने मुझे गहरा है
आज वह कौन सा काम है जो मैं ना कर पाऊं
चाहूं तो पुरुषों को छोड़ पीछे चार कदम आगे बढ़ जाऊं
हां मैं हिंदुस्तानी नारी हूं, हां मैं हिंदुस्तानी नारी हूं
पर अब ना मैं अबला हूं और ना ही बेचारी हूं
हां मैं हिंदुस्तानी नारी हूं
हा मै हिंदुस्तानी नारी हूंंंं

डॉ निर्मला राजपूत, सहायक प्राध्यापक
एस एन डी टी, वूमेन्स यूनिवर्सिटी, पुणे

 

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