अर्जुन तितौरिया की कविता : चरण वंदन श्री रघुनंदन जी की

चरण वंदन श्री रघुनंदन जी की

चरण वंदन श्री रघुनंदन जी की
कौशल्या दशरथ नंदन जी की

सिया सहित वन को गए रघुराई
अहिल्या माई को शिलामुक्त कराई

चरण वंदन श्री रघुनंदन जी की
दुष्ट दलन परमेश्वर जी की

हनुमत वामन रूप धर आया
राम लखन को समझ ना पाया

श्री राम पूर्ण परिचय दिन्हे
हनुमत नयन भीगे पलछिने

देखत जिनकी राह निहारूं
उनको आज में सम्मुख पाऊं

मैं बुद्धिहीन कपि वन को वानर
क्षमा करहू भूल विप्र करे अभिनंदन

वानरराज को न्याय दिलाया
बाली को श्री धाम पहुंचाया

सूरपणखा ने नाक कटाई
दुष्टता फलस्वरूप दंड वह पाई

खर दूषण को वध करें रघुराई
ऋषिजन को शुभ आशीर्वाद सो पाई

कुंभकरण बुद्धिमान अतिबलशाली
रावण ने पर एक ना मानी
वंदन कर युद्ध की ठानी

रावण को निज दियों बताए यदि
मैं मरुं तो युद्ध ना कीजे मेरे स्वामी

कुंभकर्ण वध किए रघुराई
लंका में कोलाहल छाई

मेघनाथ अब आयो रणभूमि
छलकपट का था वह गामी

लक्ष्मण मूर्छित हो गिरे धारणी पर
रघुकुल नंदन हुए अति व्याकुल

बजरंगबली संजीवन लाए
लखन लाल के प्राण बचाए

नीति समय अब वह आया
मेघनाथ को हरिधाम पहुंचाया

अंततः आज समय वह आया
चारों वेदों का ज्ञाता रावण
राम के सम्मुख युद्ध को आया

युद्ध हुआ भयंकर प्रलायंकारी
रावण की क्षति हुई भारी

रावण था बड़ा भाग्य वाना
प्रभु राम के हाथ मृत्यु को पाना
उसका यह एक ध्यय मात्र था
सो उसने पाया आज था।

चरण वंदन श्री रघुनंदन जी की
कौशल्या दशरथ नंदन जी की।।

अर्जुन तितौरिया

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