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राजीव कुमार झा की कविता : औरत

।।औरत।।
राजीव कुमार झा

चांदनी में निखर कर
सुबह में नदी
सोने की
धार सी बहने लगी
घर के चारों ओर
आकर
इसके बाद धूप फैल
गयी
औरत दिनभर घर के
कामकाज निबटाती
छोटे बच्चों को
दोपहर में दूध पिलाती
घर में सबके लिए
खाना
पकाती
आजाद ख्यालों वाली
पर्दे में सबकी करती
रखवाली
उससे डरती
बेहद खौफनाक रात
वह काली
औरत धान गेहूं की
सोने सी बाली
सबके आंगन की
खुशहाली

Rajiv Jha
राजीव कुमार झा, कवि/ समीक्षक

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