राजीव कुमार झा की कविता : जो कभी जाने

।।जो कभी जाने।।
राजीव कुमार झा

कातिल के कारनामे
सुनकर ख़ामोश होकर
सब निकल पड़े
प्यार की वारदात के
बारे में
इसके बाद घर के
पास
आकर
कोई क्या जाने
रात की तरह
चारों ओर दिनभर
चुप्पी फैल जाती
जिंदगी की सच्चाई
रोज सिमटती
तुम्हारे साथ
बीते दिनों की याद
आती
बंद लिफाफे में
उदास पड़ी
चिट्ठी पाती
तुम्हारे पास आकर
सच्चाई को
जो कभी जाने
सुनाई देते रहे
अक्सर तुम्हारे बहाने
सब कातिल के बने
दीवाने
सूनी बस्तियों में
गुलजार होते
रात में उसके ठिकाने

राजीव कुमार झा, कवि/ समीक्षक

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