राजीव कुमार झा की कविता : ठहरा हुआ पानी

।।ठहरा हुआ पानी।।
राजीव कुमार झा

तुम इसी तरह
कभी पास आती
गुलजार हो जाती
सूनी जिंदगी
रोशनी से सराबोर
गांव के तालाब में
ठहरा हुआ पानी
यहां दस्तक देती
कितनी सारी पुरानी
अनसुनी कहानी
यहां गुजरते रास्ते पर
तेज धूप दोपहर में
पसर जाती
शाम में तुम खामोश
होकर पार्क में घूमने
आती
यहां अंधेरे में आकर
कोई मन को टटोलता
सितारों को चांद
रोशनी के पास पाकर
उसी पहर टोकता
तुम हंसती
सुबह फूलों को देखकर
इतने सारे रंगों से
महकती रहेगी
यह अपनी जिंदगानी

राजीव कुमार झा, कवि/ समीक्षक

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