डॉ. नीलम
।।अबके होली में।।
सूने-सुने आँगन हो गये,
चौबारे खाली हुए
ढोल, चंग पे थाप लगाते
हाथ बेगाने हो गये
सज रहीं हैं महफिलें
बजे वाद्यवृंद भी,
ढोलक की थाप पर
विदेशी रौनक छाई है।
नौजवानी का हो हल्ला, गलियों से गायब हुआ,
दिन-दहाड़े नशे में गाफिल युवाओं का शोर हुआ।
घर की चारदिवारी में बैठी नटखट गोरियाँ,
मुँह बिसोरे बैठी कोने में भौजी की मीठी बोलियाँ।
अबके होली के रंगो ने भी कसम खाई है
भाईचारे बिना हमारी कोई बात नहीं बन पाई है।