पारो शैवलिनी की कविता – अम्फान : प्रकृति की चेतावनी

दिन मंगलवार
बंगाल के कई इलाक़ों के लिए
अमंगल साबित हुआ।
अचानक मौसम ने करवट ली
एक दिन पहले
जहाँ लोग गरमी से परेशान थे
आसमान काला हो गया
दिन में ही अंधेरा छा गया।
कोरोना का तो आतंक था ही
अम्फान का आतंक भी
विकराल हो गया।
11 साल बाद आयला से भी
सुपर साइक्लोन का तांडव
ना जाने कितनो की जान लेगी
कितने होंगे बेघर
कितनों का छुटेगा आशियाना
कितनों का टूटेगा सपना।
आयला,कोरोना और अब अम्फान, ये सभी
मात्र प्राकृतिक आपदा नहीं
बल्कि मानव के प्रति
प्रकृति का खुला आंदोलन है।
मानव ने काफी क्षति किया है
प्रकृति का।
प्रकृति से भी महान बनना चाहता है मानव।
वो भूल बैठा है
कि प्रकृति उसका गुलाम नहीं
अपितु मानव उसका गुलाम है।
जिस प्रकृति का नुकसान करने में उसे महीनों लग जाते हैं
प्रकृति उस मानव का
मिनटों में कर सकती है
बहुत बड़ा नुकसान।
यही सबक देना चाहती है वो।
समय रहते चेत जाये मानव
समय रहते संभल जाये मानव
प्रकृति की इस चेतावनी से।
नहीं तो
फिर कभी,कहीं ना कहीं
अम्फान से भी सुपर साइक्लोन
आ सकता है तबाही के लिये
और तब
मानव को इससे बचने का समय भी नहीं मिल सकेगा।

  -पारो शैवलिनी
    (चित्तरंजन)

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