“जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।”
हावड़ा । मध्ययुगीन साधकों में रैदास का विशिष्ट स्थान है। कबीर की तरह रैदास भी संत कोटि के प्रमुख कवियों में विशिष्ट स्थान रखते हैं। कबीर ने ‘संतन में रविदास’ कहकर इन्हें मान्यता दी है। परशुराम-सेना पश्चिम-बंगाल ने बड़े हर्ष और उल्लास के साथ संत- रविदास जी की जयंती को मनाया। इस अवसर पर संत रविदास के बताए गए विचारों एवं सिद्धांतों पर अमल करते हुए समाज को एवं देश को आगे लेकर चलने की आवश्यकता है, यह संकल्प लिया गया। इस अवसर पर संत रविदास जी की तस्वीर पर माल्यार्पण कर श्रद्धासुमन अर्पित किया गया।
इस कार्यक्रम के सूत्रधार भृगुनाथ पाठक एवं चंद्रदेव चौधरी ने कार्यक्रम में उपस्थित अतिथियों का सम्मान एवं स्वागत पुष्पगुच्छ तथा अंग वस्त्र देकर किया। कार्यक्रम में मुख्य रूप से उपस्थित थे – विजय प्रताप, बालजेंद्र, रामअवतार, रामसुख, प्रमोद कुमार आनंद, गिरीश दास, मोलईदास, अमन कुमार आदि। कार्यक्रम के अंत में सुनील शुक्ला ने सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया। मंच का सफल संचालन संतोष कुमार तिवारी ने किया।