अभिनेत्री नहीं पार्श्वगायिका बनना चाहती थी पद्मिनी कोल्हापुरी

मुम्बई। बॉलीवुड में अपनी दिलकश अदाओं से लोगों को मंत्रमुग्ध करने वाली पद्मिनी कोल्हापुरी फिल्म अभिनेत्री नहीं बल्कि पार्श्वगायिका बनना चाहती थीं।पद्मिनी कोल्हापुरी का जन्म 01 नवंबर, 1965 को एक मध्यम वर्गीय कोंकणी परिवार में हुआ। उनके पिता पंढरीनाथ कोल्हापुरे शास्त्रीय गायक थे जबकि उनकी मां एयरलाइंस में काम किया करती थीं। घर में संगीत का माहौल रहने के कारण पद्मिनी कोल्हापुरीका रुझान भी संगीत की तरफ हो गया और वह अपने पिता से संगीत सीखने लगीं। वर्ष 1973 में प्रदर्शित फिल्म ‘यादों की बारात’ में उन्हें गाने का अवसर मिला।

इस फिल्म में उनकी आवाज में रचा बसा यह गीत ‘यादो की बारात निकली है आज दिल के द्वारे’ श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुए। इसके बाद उन्होंने किताब, दुश्मन, दोस्त जैसी फिल्मों में भी अपनी बहन शिवांगी के साथ पार्श्वगायन किया। पद्मिनी कोल्हापुरी ने बतौर बाल कलाकार अपने करियर की शुरुआत निर्माता बी.एस.थापा की फिल्म ‘एक खिलाड़ी बावन पत्ते’ से की। वर्ष 1974 में उन्हें अपनी दूर की रिश्तेदार आशा भोंसले के प्रयास से देवानंद की फिल्म ‘इश्क इश्क इश्क’ में बतौर बाल कलाकार काम करने का मौका मिला।

इसके बाद उन्होंने ड्रीमगर्ल, साजन बिना सुहागन, जिंदगी जैसी फिल्मों में भी बतौर बाल कलाकार काम किया। वर्ष 1977 में प्रदर्शित फिल्म ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ उनके करियर की अहम फिल्म साबित हुई। राजकपूर की इस फिल्म में उन्होंने अभिनेत्री जीनत अमान के बचपन की भूमिका निभाई थी। इस फिल्म में पदमिनी के अभिनय को जबरदस्त सराहना मिली इसके साथ ही वह दर्शको के बीच अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गई।

वर्ष 1980 में प्रदर्शित फिल्म ‘इंसाफ का तराजू’ पद्मिनी कोल्हापुरी के करियर की महत्वपूर्ण फिल्म साबित हुई। बी.आर.चोपड़ा के बैनर तले बनी यह फिल्म वर्ष 1976 में प्रदर्शित हॉलीवुड फिल्म ‘लिपिस्टक’ की रिमेक थी। इस फिल्म में पद्मिनी कोल्हापुरी ने अभिनेत्री जीनत अमान की बहन की भूमिका निभाई थी जिन्होंने बलात्कार की शिकार एक युवती की भूमिका निभाई थी। फिल्म में अपनी संजीदा भूमिका से उन्होंने दर्शको का दिल जीत लिया साथ ही सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार से भी सम्मानित की गई।

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