अब होगा उत्तर प्रदेश की लोककलाओं का संरक्षण

• एफओएपी और फोकार्टोपीडिया के बीच हुआ समझौता
• लोक-संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु एमओयू
• लोककला का दस्तावेजीकरण और डिजिटाइजेशन प्राथमिकता
• बनेगी उत्तर प्रदेश की लोक संस्कृति की डिजटल लाइब्रेरी

लखनऊ। डॉ. ए.पी.जे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय, लखनऊ के वास्तुकला एवं योजना संकाय (एफओएपी) ने सोमवार को फोकार्टोपीडिया फाउंडेशन, पटना (बिहार) के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किया। समझौता ज्ञापन का उद्देश्य लोक, परंपरागत और जनजातीय कलाओं का संरक्षण एवं संवर्धन के साथ-साथ वर्तमान शिक्षा प्रणाली में उनकी भूमिकाओं को सुनिश्चित करने की दिशा में मिलकर काम करना है। एफओएपी की तरफ से संस्था की प्राचार्य एवं डीन डॉ. वंदना सहगल और फोकार्टोपीडिया के निदेशक सुनील कुमार ने एफओएपी की विभागाध्यक्ष प्रो. रितु गुलाटी, आर्ट एंड ग्राफिक्स प्रकोष्ठ के असिस्टेंट प्रोफेसर गिरीश पांडेय, कलाकार व कला लेखक भूपेंद्र कुमार अस्थाना और फोकार्टोपीडिया के एडमिनिस्ट्रेटर अनूप सिंह की उपस्थिति में हस्ताक्षर किये।

इस अवसर पर डॉ. वंदना सहगल ने कहा कि फोकार्टोपीडिया विगत कई वर्षों से बिहार के साथ-साथ कई प्रदेश की लोककलाओं का दस्तावेजीकरण और संरक्षण की दिशा में प्रसंसनीय कार्य कर रही है। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश में भी लोककलाओं के दस्तावेजीकरण और उनके संरक्षण की दिशा में गंभीरतापूर्वक काम करने की जरूरत है। आज अनेक लोककलाएं जिसमें न केवल चित्रकला शामिल है, बल्कि लोकगाथाएं, कथाएं, मुहावरे, लोकोक्तियां आदि भी शामिल हैं, उसकी परंपरा खत्म होने की कगार पर है। ऐसे में प्रदेश की लोककलाओं के संरक्षण और संवर्धन के लिहाज से फोकार्टोपीडिया के साथ एफओएपी का यह समझौता एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे शोध के अवसरों एवं संसाधनों को विकसित करने, संयुक्त रूप से शोध के अवसर तलाशने, शोध की क्षमताओं को बढ़ाने और शैक्षणिक सहयोग को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।

फोकार्टोपीडिया के निदेशक सुनील कुमार ने कहा कि आज पूरी हिन्दी पट्टी में, खासतौर पर बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड जैसे राज्यों में अनेक कला परंपराएं हाशिये पर हैं जिनके दस्तावेजीकरण और डिजिटाइजेशन की बहुत जरूरत है, ताकि उनसे संबंधित जानकारी डिजिटल माध्यमों में भावी पीढ़ी को हस्तांतरित की जा सके। ऐसे में एफओएपी की मदद से फोकार्टोपीडिया उत्तर प्रदेश की कला-संस्कृति के दस्तावेजीकरण और उसके संरक्षण की दिशा में गंभीरता पूर्वक काम कर सकेगी।

गौरतलब है कि एफओएपी में आर्ट एंड ग्राफिक्स लैब भी है जहां छात्र-छात्राएं वास्तुकला में अंतर्निहित कलात्मक सौदर्य से परिचित होते हैं, साथ ही कला में प्रयोगधर्मिता को भी बढ़ावा मिलता है। ऐसे में एक ऑनलाइन आर्काइव के रूप में विकसित होती फोकार्टोपीडिया डिजिटल लाइब्रेरी भी अब छात्र-छात्राओं के लिए उपयोगी साबित होगी जहां वे लोक एवं परंपरागत कलाओं के समृद्ध इतिहास से परिचित होंगे।

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