पुण्यतिथि पर दिनकर जी को पूर्वोत्तर भारत एवं पश्चिम बंगाल ने याद कर दिया काव्यांजलि

साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं अपितु समाज का वह सूरज एवं दीपक भी होता है- डॉ. बत्रा

कोलकाता । “साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं होता अपितु समाज का वह सूरज एवं दीपक भी होता है जो समाज में फैले अन्धकार को दूर करने में सहायक भी होता है। स्वामी विवेकानंद, सुभाष चन्द्र बोस एवं दिनकर जी ऐसे ही समाज के सूरज और दीपक थे, जिन्होनें समाज के संत्रास को देखकर केवल उसका रोना नहीं रोया, बल्कि उस काल की दुर्दशा को बदलने का अनवरत प्रयास भी करते रहे ये उद्गार हैं- राष्ट्रीय कवि संगम के राष्ट्रीय महामंत्री डॉ. अशोक बत्रा के, जो कि राष्ट्रीय कवि संगम पश्चिम बंगाल एवं पूर्वोत्तर भारत द्वारा राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे।

उन्होनें आगे कहा कि वीरता और विनय का संगम अगर देखना हो तो दिनकर को देखना चाहिए! बत्रा जी ने बताया जब भी कोई उनसे उनका साहित्यिक परिचय माँगता है तो वह यही कहते हैं कि- “चाहे रहने को छप्पर दे, चाहे रोटी गिनकर दे/ पर वाणी में ओज दे इतना, कि घनी रात में दिनकर दे!” मध्य कोलकाता इकाई के संयोजन में आयोजित इस दिनकर-पुण्यतिथि के आभासीय पटल के कार्यक्रम की अध्यक्षता की प्रांतीय अध्यक्ष डॉ. गिरधर राय ने की, जिसमें बंगाल एवं पूर्वोत्तर भारत के विभिन्न वरिष्ठ एवं नवागत कलमकारों ने भागीदारी की एवं कार्यक्रम का अत्यंत ही कुशल संचालन किया कवयित्री स्वागता बासु ने।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में रहे – गजेन्द्र नाहटा एवं अन्य विशिष्ट अतिथि के रूप में रहे त्रिपुरा के प्रांतीय अध्यक्ष प्रो० विनोद मिश्र, मेघालय के प्रांतीय महामंत्री आलोक सिंह, छत्तीसगढ़ से मल्लिका रुद्रा, रामपुकार सिंह, रामाकांत सिन्हा एवं उमेशचंद तिवारी, जिनकी गरिमामयी उपस्थिति ने कार्यक्रम को गौरव प्रदान किया। इस कार्यक्रम के गूगल मीट एवं फेसबुक पर ऑनलाइन प्रसारण के दायित्य का निर्वाह किया देवेश मिश्रा ने।

कार्यक्राम का शुभारम्भ – आलोक चौधरी द्वारा सरस्वती वन्दना की प्रस्तुति के साथ हुआ। तत्पश्चात, जिला संयोजक सौमी मजुमदार ने उपस्थित सभी गणमान्य अतिथियों का स्वागत करते हुए प्रारम्भ की एक ऐसी अद्भुत काव्यांजलि, जिसमें एक से एक बेजोड़ रचनाकारों ने दिनकर जी के प्रति अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए शौर्य एवं श्रृंगार से परिपूर्ण ऐसी रचनाएँ प्रस्तुत की, जिससे उपस्थित सभी सुधीवृन्द मंत्रमुग्ध हो उठे।

इन रचनाकारों में– रजनी सिंह ने – नारी को कलियुग की अहिल्या के रूप में उभारा तो अंजू चौबे ने कोलकाता शहर का चित्रण काव्य में उतारा, निशा राजभर ने नारी की स्वतन्त्रता को अपनी रचना का विषय बनाया तो सौमी मजुमदार ने – ‘ज़रूरी था क्या’ – यह सामयिक प्रश्न उठाया। सुषमा राय पटेल ने पर्यावरण पर बढ़ते संकट की समस्या उठाई तो स्वागता बासु ने झूठी बातों पर न चाहते हुए भी हंसने की बेबसी जताई। आलोक चौधरी ने ‘शौर्य और श्रृंगार’ रचना में दिनकर जी के सृजन कार्यों की झलक दिखलाकर सभी का मन लिया जीत तो रामाकांत सिन्हा ने देशप्रेम जगाया सुनाकर – “ओ मैया ज़रा तिलक लगाना’ – सैनिक के सरहद पर जाने का गीत।

देवेश मिश्र ने ‘रश्मिरथी’ से दिनकर जी की सुप्रसिद्ध रचना – ‘कृष्ण की चेतावनी’ की आवृति कर ओज का किया संचार तो रामपुकार सिंह ने अपनी रचना में दिनकर जी को ठहराया – ‘ओज की कविताओं के कोषागार’ उमेश चंद तिवारी ने श्रृंगार पर – ‘याद हम आते रहे’ – ग़ज़ल सुनाई, तो गजेन्द्र नाहटा जी ने – ‘भीतर का दर्द बताया नहीं जाता’ – यह वेदना भी समझाई। मेघालय के महामंत्री आलोक सिंह ने – ‘मैं तो बस आलोक हूँ, मुझको आलोक रहने दो’ प्रस्तुत कर सभी को किया भाव विभोर तो त्रिपुरा के अध्यक्ष विनोद मिश्र ने ‘जो विरोध में खड़ा हुआ है, वो अदना इंसान है’ यह सुनाकर परिलक्षित किया आज का दौर।

प्रांतीय अध्यक्ष डॉ. गिरधर राय ने दिनकर जी की कविता – ‘कलम आज उनकी जय बोल’ सुनाकर राष्ट्रवि को श्रद्धांजलि अर्पित की एवं अपना चिर प्रसिद्द सामयिक गीत – ‘कहूँ मैं किससे मन की बात’ सभी के सम्मुख रख, कार्यक्रम को चरमोत्कर्ष पर पहुंचा दिया। इन सभी काव्य मनीषियों का हौसला बढ़ाते हुए दर्शकदीर्घा में – हिमाद्री मिश्र, श्यामा सिंह, रीमा पांडे, मनोरमा झा, रणजीत माझी एवं प्रदीप सिंघी ने भी उपस्थित रहकर कार्यक्रम को सफल बनाने में अहम् भूमिका निभाई। अंत में, मध्य कोलकता के अध्यक्ष रमाकांत सिन्हा ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन कर यह अभूतपूर्व कार्यक्रम सुसंपन्न किया।959cc9e5-363e-465c-8e06-0907603d65d1

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