बंगाल सरकार के इस फरमान से टेंशन में गैर बांग्लाभाषी

कोलकाता। पश्चिम बंगाल अपने स्थापना काल से ही भाषाई रूप से विविधता भरा रहा है। बंगाल के कई क्षेत्रों में गैर बांग्ला भाषियों की खासा आबादी है। उत्तर बंगाल, दुर्गापुर, आसनसोल, पुरुलिया, नॉर्थ 24 परगना का जूट बेल्ट और ग्रेटर कोलकाता क्षेत्र के कई इलाके ऐसे हैं, जहां हिन्दी, उर्दू और संथाली बोलने वालों की भरमार है। मातृभाषा के संरक्षण के मामले में बंगाल शुरू से रही उदार राज्य रहा है। यही कारण है कि राज्य में लगभग 2000 हिंदी माध्यम के सरकारी/ गैर सरकारी स्कूल संचालित हैं, जहां 12वीं कक्षा तक सभी विषयों की शिक्षा हिंदी माध्यम में दी जाती है।

इसके अलावा लगभग 400 उर्दू माध्यम स्कूलों में बारहवीं कक्षा तक की पढ़ाई उर्दू माध्यम से होती है। राज्य में लगभग 350 संथाली माध्यम के स्कूल भी हैं। उत्तर बंगाल के डुआर्स-तराई क्षेत्र में नेपाली भाषा माध्यम के स्कूल हैं। दरअसल इस राज्य में भाषाई आधार पर सरकारी व निजी स्कूलों का संचालन होता रहा है। वर्ष 1980 तक गैर बांग्ला माध्यम के स्कूलों में 10वीं कक्षा तक बांग्ला भाषा अनिवार्य तृतीय भाषा के पेपर के रूप में पढ़ाई जाती थी।

लेफ्ट राज (वाम दलों के शासन) के शुरू होते ही वर्ष 1981 से इसका अवमूल्यन कर इसे केवल सातवीं-आठवीं कक्षा तक सीमित कर दिया गया। लेकिन गैर बांग्ला माध्यम के स्कूलों में पढ़ने वाले भाषाई अल्पसंख्यक (राज्य के हिंदी, उर्दू, नेपाली, संथाली भाषा बोलने वाले) बांग्ला भाषा ठीक से नहीं सीख पा रहे हैं। इसलिए कि सरकार की ओर से कोई उचित व्यवस्था नहीं की गई है।

कक्षा 7 से 8 में तीसरी भाषा के रूप में बांग्ला का अध्ययन करने के लिए सप्ताह में केवल दो कक्षाएं आवंटित की गईं, जबकि पहली और दूसरी भाषा की 100 अंकों की परीक्षा के लिए प्रत्येक सप्ताह सात कक्षाएं आवंटित की गईं। कक्षा सातवीं-आठवीं में तृतीय भाषा बांग्ला विषय की परीक्षा का कोई पाठ्यक्रम ही नहीं है। नतीजा यह हुआ कि न सरकारी पुस्तकें दी गईं और न पश्चिम बंग मध्य शिक्षा परिषद द्वारा अनुमोदित पुस्तकें ही उपलब्ध कराई गईं।

निश्चित पाठ्यक्रम की अनुपलब्धता के कारण पश्चिम बंग मध्य शिक्षा परिषद द्वारा मान्यता प्राप्त पाठ्य पुस्तकें पर्याप्त संख्या में किसी भी निजी प्रकाशन द्वारा उपलब्ध नहीं कराई जा सकीं। पाठ्य पुस्तकें प्राप्त करने के सरकारी और निजी दोनों माध्यम बंद रखे गए। राज्य सरकार के स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा भाषाई अल्पसंख्यक माध्यम स्कूलों को तीसरी भाषा बांग्ला पेपर के लिए न तो कोई स्थायी शिक्षक पद आवंटित किया गया है।

न कोई संविदा या अंशकालिक पद ही सृजित किया गया है। तृतीय भाषा के शिक्षकों के लिए भाषा शिक्षण कार्यशाला प्रशिक्षण का आयोजन भी कभी नहीं किया गया। हालांकि सुविधाएं न देने के बावजूद गैर बांग्ला माध्यम स्कूलों के लिए कक्षा सात-आठ की मार्क्सशीट में तीसरी भाषा का अंक अनिवार्य रूप से भरने का कॉलम जरूर जोड़ा गया है। वाम दलों के शासन काल में हिंदी के साथ पक्षपात पूर्ण रवैया चलता रहा।

माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर तक पढ़ाई हिंदी में होती थी, लेकिन प्रश्नपत्र बांग्ला या अंग्रेजी में आते थे। लंबे संघर्ष के बाद माध्यमिक परीक्षा में हिंदी में प्रश्नपत्र मिलने लगे, लेकिन उच्च माध्यमिक स्तर की परीक्षा में इस प्रावधान को बरकरार रखा गया। बोर्ड का मानना था कि हिंदी में प्रश्नपत्र बनाने के लिए हिंदी माध्यम के शिक्षकों को जोड़ना होगा तथा इससे प्रश्नपत्र के लीक होने का खतरा रहेगा। यानी हिन्दी भाषियों की नीयत में खोट की आशंका जताई जाती रही।

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