तुलसीदास जैसी राम राज्य की अवधारणा और कोई नहीं कर सका : प्रो. शर्मा

  • गोस्वामी तुलसीदास : आधुनिक परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी

निप्र, उज्जैन : देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा गोस्वामी तुलसीदास : आधुनिक संदर्भ में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का आयोजन किया गया। आयोजन के मुख्य अतिथि ओस्लो, नॉर्वे के वरिष्ठ साहित्यकार सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक थे। आयोजन के विशिष्ट अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, वरिष्ठ साहित्यकार हरेराम वाजपेयी, जी.डी. अग्रवाल, इंदौर, संतोष श्रीवास्तव, भोपाल, सुवर्णा जाधव, पुणे तथा डॉ. प्रभु चौधरी थे।कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था के अध्यक्ष शिक्षाविद ब्रजकिशोर शर्मा ने की।

विक्रम विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि संपूर्ण भारतीय दर्शन मूल्यों, संस्कारों और संस्कृति से साक्षात्कार कराता है। तुलसीदास द्वारा रचित साहित्य भारतीय दर्शन एवं संस्कृति जीवंत प्रतिबिम्ब है। उनका मानस भारतीय जीवन की आचार संहिता है। उन्होंने रामराज्य की महत्त्वपूर्ण कल्पना और अवधारणा दी, जिसे और कोई अब तक नहीं दे सका है।

स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे महात्मा गांधी एवं अन्य लोग उस समय तुलसीदास जी से प्रभावित थे। गांधीजी का स्वराज तुलसीदास जी के रामराज्य का प्रतिरूप है, जिसे उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक चिंतन के रूप में अंगीकार किया था। तुलसीदास ने धर्मरथ के रूपक के माध्यम से धर्म के विभिन्न अंगों का सहज प्रतिपादन किया, जो सदैव प्रासंगिक रहेंगे।

मुख्य अतिथि ओस्लो, नॉर्वे से सुरेश चंद शुक्ल ने कहा कि तुलसीदास का साहित्यिक जीवन और दर्शन नवीन प्रेरणा जगाता है। विश्व में उन्हें सभी जगह पूजा जाता है। भारत में वर्तमान में जो चुनौतियां हैं, उनके समाधान का मार्ग तुलसी काव्य में मौजूद है। मुख्य वक्ता के रूप में भोपाल की डॉ. संतोष श्रीवास्तव ने तुलसीदास को लोक रंजक और भारतीय संस्कृति का संरक्षक कवि बताया। अध्यक्षीय उद्बोधन में उज्जैन के ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि तुलसीदास का दृष्टिकोण व्यापक है। राम के माध्यम से उन्होंने संपूर्ण विश्व को समदृष्टि से देखा। दुनिया में वे थे, हैं और सदैव रहेंगे।

इंदौर से हिंदी परिवार के अध्यक्ष हरेराम वाजपेयी ने रामचरितमानस के कुछ प्रसंगों को प्रस्तुत करते हुए तुलसीदास को स्वतंत्रता प्रेमी साहित्यकार बताया। पराधीन सपनेहु सुख नाहीं इस विषय पर उन्होंने विशद व्याख्या की। आजादी के लिए उन्हें प्रेरणा प्रदाता बताया। पुणे की सुवर्णा जाधव ने तुलसीदास को सामाजिक सामंजस्य और समरसता की भावना का कवि बताया तथा उनके जीवन दर्शन पर प्रकाश डाला। इंदौर से डॉ. जी.डी. अग्रवाल ने रत्नावली प्रसंग पर प्रकाश डालते हुए उन्हें एक संत कवि बताया। रायपुर से प्रो. पूर्णिमा कौशिक ने सरस्वती वंदना के साथ तुलसीदास के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त किए एवं वक्ताओं का परिचय दिया।

संस्था के महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने कार्यक्रम की प्रस्तावना प्रस्तुत की एवं बताया यह संयोग है कि आजादी के अमृत महोत्सव पर तुलसीदास जी की जयंती हम मना रहे हैं। ये दोनों ही प्रसंग राष्ट्र के गौरव से जुड़े हैं। गोष्ठी में डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक, लक्ष्मीकांत वैष्णव, डॉ. शिवा लोहारिया, प्रवीण बाला, बाला साहेब तोरस्कर, मुंबई, डॉ. रोहिणी डावरे आदि कई साहित्यकारों ने सहभागिता की। कार्यक्रम का सरस संचालन तुलसी साहित्य को प्रस्तुत करते हुए गाजियाबाद से डॉ. रश्मि चौबे ने किया। अंत में आभार प्रयागराज की उर्वशी उपाध्याय ने व्यक्त किया।

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