दुनियां में बढ़ते महिलाओं के नेतृत्व, प्रभुत्व के क्रमं में भारत ने इतिहास रच दिया है
27 वर्षों से लटकते महिला आरक्षण बिल लोकसभा में पारित – जनगणना और परिसीमन प्रक्रिया के बाद 2029 या 2034 से लागू होने की संभावना – एडवोकेट किशन भावनानी गोंदिया
किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तरपर पूरी दुनियां देख रही है कि हाल के कुछ वर्षों में भारत सफलताओं के नए-नए आयाम बनाकर इतिहास पर इतिहास रचे जा रहा है। आर्टिकल 370, 35 ए तीन तलाक, राम मंदिर जैसे अनेक मुद्दों को सुलझाने के बाद 27 वर्षों से लटका हुआ महिला आरक्षण बिल 128 वें संविधान संशोधन विधेयक 2023 को 20 सितंबर 2023 को लोकसभा के विशेष सत्र में 454/2 वाले रिकॉर्ड अद्भुत बहुमत से पर्ची से किए गए वोटो से पारित हो गया है। जिसे शनिवार 21 सितंबर 2023 को राज्यसभा में भी पारित किया जाएगा ऐसा मेरा मानना है। फिर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह लोकसभा व विधानसभाओंं में महिलाओं के आरक्षण के लिए 33 प्रताशित आरक्षण का संवैधानिक रूप बन जाएगा जो पूरे विश्व कीमहिलाओं के सम्मान में उठाया गया भारत का महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि पूरे विश्व के अधिकांश देशों में महिला लोकसभा,सीनेट में भारत पिछड़ा हुआ था जहां 60 प्रतिशत से 28 प्रतिशत तक सीटें महिलाओं की है, वहीं भारत लोकसभा में 15.21 प्रतिशत व राज्यसभा में 14 प्रतिशत महिलाएं हैं, जो अब नारी शक्ति वंदन विधेयक के कानून बनने के बाद 33.33 प्रतिशत याने एक तिहाई सहभागिता हो जाएगी जो ऐतिहासिक कदम है।
सारी महिलाएं सभी सांसदों का शुक्रिया अदा कर रही है परंतु विशेष बात यह है कि यह कानून बनने के बाद भी 2029 या 2034 से ही लागू होगा क्योंकि कानून बनने के बाद 2021 से लंबित जनगणना पूरी होगी जो अनुमानतः 2024 लोकसभा चुनाव के बाद होगी फिर लोकसभा सीटों का परिसीमन होगा, उसमे भी संविधान के तहत 2026 तक परिसीमन पर रोक लगी हुई है। उधर अनुच्छेद 368 कहता है, कि अगर केंद्र सरकार के कानून से राज्यों के अधिकारों पर कोई प्रभाव पड़ता है तो ऐसे मामलों में कानून बनने के लिए कम से कम 50 प्रतिशत विधानसभाओं की मंजूरी लेनी होगी। यानें कि अगर केंद्र सरकार को ये कानून देशभर में लागू करना है तो इसे कम से कम 14 राज्यों की विधानसभाओं से भी पास कराना होगा। हालांकि कुछ सूत्रों का कहना है कि इसकी जरूरत नहीं होगी।उधर 20 सितंबर 2023 को लोकसभा में बिल पर बस की लाइव टेलीकास्ट टीवी चैनलों से हमने देखे उसमें लोकसभा में नारी शक्ति वंदन विधेयक को लेकर हुई चर्चा में केंद्रीय मंत्री, रायबरेली सांसद और कांग्रेस की पूर्व अध्यक्षा सहित 60 सदस्यों ने हिस्सा लिया। विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए केंद्रीय मंत्री ने रानी दुर्गावती, रानी चेन्नम्मा, रानीअहिल्याबाई रानी लक्ष्मी जैसी असंख्य वीरांगनाओं का उल्लेख किया। चूंकि,पूरी उम्मीद है कि बिल राज्यसभा में पारित कर कानून बन जाएगा इसलिए मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, दुनियां में बढ़ते महिलाओं के नेतृत्व, प्रभुत्व के क्रमं में भारत नें इतिहास रच दिया है।
साथियों बात अगर हम 20 सितंबर 2023 को देर शाम नारी शक्ति वंदन विधेयक पारित होने की करें तो, बुधवार को संसद के विशेष सत्र के तीसरे दिन नारी शक्ति वंदन बिल लोकसभा में पारित हो गया। इस बिल के समर्थन में 454 और खिलाफ में 2 मत डाले गए। 7 घंटे से अधिक समय तक चले बहस के बाद मतदान की गई। बहस में सोनिया गांधी से लेकर अमित शाह तक ने सदन में अपनी बात रखी। हालांकि अधिकतर राजनीतिक दलों की तरफ से इसके समर्थन की घोषणा की गई थी। कुछ राजनीतिक दलो को इसके प्रावधान को लेकर कुछ सवाल थे। राजद और समाजवादी पार्टी की मांग थी कि इसमें ओबीसी समुदाय के लिए भी अलग से आरक्षण का प्रावधान हो। विपक्ष ने विधेयक के उस प्रावधान की आलोचना की है जिनके अनुसार जनगणना के बाद परिसीमन होगा और उसके बाद ही महिलाओं के लिए कोटा लागू किया जाएगा। साथ ही विपक्ष की मांग है कि महिला आरक्षण विधेयक में ओबीसी के लिए भी कोटा के अंदर कोटा का प्रावधान किया जाना चाहिए।
साथियों बात अगर हम विदेशों में महिलाओं के सांसद सीनेट सीटों पर पकड़ की करें तो, अमेरिका के निचले सदन में 60 फीसदी से ज्यादा संसदीय सीटों पर महिलाओं का कब्जा है, लेकिन ऊपरी सदन में केवल 34.6 प्रतिशत सीटें महिलाओं के पास हैं। आईपीयू के महासचिव के मुताबिक मौजूदा दर पर बाकी दुनियां को इसकी बराबरी करने में 80 साल लग सकते हैं। अमेरिकी कांग्रेस में कुल 535 सदस्य हैं, जिसमें 100 अमेरिकी सीनेट में हैं। संसद में महिला सांसदों की संख्या के मामले में सबसे आगे अफ्रीकी देश रवांडा है। यहां 60 फीसदी से ज्यादा सीटों पर महिला सांसदों का कब्जा है लेकिन ऊपरी साधन में केवल 34.6 प्रतिशत सीटें हैं। साल 2008 में रवांडा महिला बहुमत संसद वाला पहला देश बना था। इसके बाद नंबर आता है, क्यूबा (53 प्रतिशत) और निकारागुआ (52 प्रतिशत) का, जहां की संसद में महिलाओं की संख्या पुरुषों से ज्यादा है। न्यूजीलैंड मैक्सिको और संयुक्त अरब अमीरात में महिला-पुरुष का अंतर समान है, जबकि आइसलैंड, कोस्टा रिका, स्वीडन और दक्षिण अफ्रीका भी इससे ज्यादा दूर नहीं हैं।
7 मार्च, 2023 तक अमेरिका के प्रतिनिधि सभा में 125 महिलाएं थीं (चार महिला गैर-मतदान प्रतिनिधि शामिल नहीं), इसी के साथ महिलाओं का कुल आंकड़ा 28.7 प्रतिशत हो गया है। यह आंकड़ा अमेरिका के इतिहास में सबसे ज्यादा प्रतिशत है, जो एक दशक पहले की तुलना में काफी बढ़ोतरी हुई है। अगस्त 2023 तक हाउस ऑफ कॉमन्स में 223 महिलाएं थीं, जो अब तक की तीसरी सबसे ज्यादा संख्या है। ब्रिटेन की संसद में कुल 650 सदस्य हैं। यह पहली बार है कि हाउस ऑफ कॉमन्स मेंमहिला प्रतिनिधित्व एक तिहाई से ज्यादा हैं। स्तातिस्ट्स की रिपोर्ट के मुताबिक 1958 से 2022 तक फ्रेंच नेशनल असेंबली में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ती-घटती रही है। 1958 में, फ्रांस की नेशनल असेंबली में 1.5 प्रतिशत से भी कम सदस्य महिलाएं थीं. 2017 में फ्रेंच नेशनल असेंबली के सभी सदस्यों में लगभग 39 प्रतिशत महिलाएं थीं। 2022 के विधानसभा चुनावों के बाद महिलाओं का आंकड़ा केवल 37.3 फीसदी हो गया। दक्षिण अफ्रीका में संसद की मौजूदा संरचना के मुताबिक नेशनल असेंबली में 46 फीसदी महिला प्रतिनिधि शामिल हैं और नेशनल काउंसिल ऑफ प्रोविंस में 36 फीसदी महिला प्रतिनिधि हैं।2019 के चुनावों के बाद, प्रांतीय स्तर पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व 30 फीसदी से बढ़कर 43फीसदी हो गया।
जनवरी 2023 तक, रूस की संसद या संघीय विधानसभा में महिला प्रतिनिधित्व उपलब्ध सीटों की कुल संख्या का 18.3 प्रतिशत दर्ज किया गया। संसद के निचले सदन स्टेट ड्यूमा में 16.7 प्रतिशत सीटों पर महिलाओं का कब्जा है। 2014 के बाद से रूस में राष्ट्रीय संसदों में महिलाओं की हिस्सेदारी धीरे-धीरे बढ़ी है। यूरोप और अमेरिका में सबसे ज्यादा महिला कैबिनेट मंत्री हैं। 1 जनवरी 2023 तक कैबिनेट मंत्रियों में 22.8 प्रतिशत महिलाएं प्रतिनिधित्व करती हैं। यूरोप और उत्तरी अमेरिका (31.6 प्रतिशत) और लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई (30.1 प्रतिशत) कैबिनेट में महिलाओं की सबसे ज्यादा हिस्सेदारी वाले क्षेत्र हैं। हालांकि, ज्यादातर अन्य क्षेत्रों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व गंभीर रूप से कम है, जो मध्य और दक्षिणी एशिया में 10.1 प्रतिशत और प्रशांत द्वीप समूह (ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को छोड़कर ओशिनिया) में 8.1 प्रतिशत तक गिर गया है। यहां के निचले सदन में 60 फीसदी से ज्यादा संसदीय सीटों पर महिलाओं का कब्जा है, लेकिन ऊपरी सदन में केवल 34.6 प्रतिशत सीटें महिलाओं के पास हैं।
साथियों बात अगर हम वर्तमान समय में भारतीय संसद में महिलाओं की भागीदारी की करें तो, 2022 में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक राज्यसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व लगभग 14 फीसदी है। 2014 में यानी 16वीं लोकसभा में, 68 महिला सांसद थीं, जो सदन की कुल ताकत का 11.87 फीसदी थीं। 2019 के लोकसभा चुनाव के मुताबिक 47.27 करोड़ पुरुष और 43.78 करोड़ महिला मतदाता हैं। 2019 के चुनावों में महिला मतदाताओं की भागीदारी 67.18 फीसदी थी, जो पुरुषों की भागीदारी (67.01 फीसदी) से ज्यादा थी।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारतीय लोकसभा में नारी शक्ति वंदन विधेयक विशाल बहुमत 454/2 से पारित दुनियां में बढ़ते महिलाओं के नेतृत्व,प्रभुत्व के क्रमं में भारत ने इतिहास रच दिया है।27 वर्षों से लटकते महिला आरक्षण बिल लोकसभा में पारित – जनगणना और परिसीमन प्रक्रिया के बाद 2029 या 2034 से लागू होने की संभावना है।