Kolkata Hindi News, कोलकाता। पश्चिम बंगाल में विभिन्न कॉलेजों और विश्वविद्यालयों का राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (एनएसी) मूल्यांकन दीर्घकालिक योजना और वित्तीय कमी की वजह से नहीं हो पा रहा है। मूल्यांकन नहीं होने की वजह से शिक्षा व्यवस्थाओं की कमियों के बारे में कोई रिपोर्ट नहीं मिल रही और शिक्षा की गुणवत्ता थी नहीं सुधर रही है
1994 में भारत के विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों का यह मूल्यांकन (एनएसी) शुरू किया गया था। यूं तो इस वर्ष नैक को तीन दशक पूरे हो रहे हैं। देशभर के शिक्षण संस्थानों को लगातार रेटिंग मिलती है लेकिन पश्चिम बंगाल के शिक्षण संस्थान इससे वंचित होते रहे हैं।
पश्चिम बंगाल के उच्च शिक्षा संस्थानों की तस्वीर पूरे देश की तुलना में अधिक नकारात्मक है। कुलपति परिषद के अध्यक्ष और दो विश्वविद्यालयों के पूर्व कुलपति डॉ. पूर्ण चंद्र मैती, बंगाल के प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ. आशुतोष घोष नैक के सदस्य रह चुके हैं।
साढ़े तीन दशकों के अध्यापन से जुड़े पश्चिम बंगाल देश के कई राज्यों से पीछे क्यों है, इस बारे में एजेसी बोस कॉलेज के कुलपति डॉ. पूर्ण चंद्र मैती ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि कॉलेज में शिक्षकों के मुकाबले प्रोफेसर की संख्या बहुत कम है। छात्रों को जिस पैमाने का शिक्षण चाहिए उस पैमाने का इंफ्रास्ट्रक्चर यहां नहीं है।
नैक के लिए आंकड़े की जरूरत पड़ती है तो बंगाल से उसे उपलब्ध नहीं कराया जाता। इसके अलावा भारी वित्तीय कमी की वजह से इन्फ्राट्रक्चर्ड दुरुस्त नहीं हो पा रहा। पिछले 23 साल से कॉलेज में शिक्षकों की भर्ती नहीं हो रही है। काफी भागदौड़ के बाद मुझे 26 शिक्षक पदों की स्वीकृति मिली।
यह वित्त विभाग में अटका हुआ है। अधिकांश कॉलेजों में यही स्थिति है। डॉ. आशुतोष घोष ने कहा कि नैक के लिए पश्चिम बंगाल में प्रशासनिक स्तर पर इतनी दिलचस्पी नहीं है। पूर्व कुलपति डॉ. बासब चौधरी ने कहा, ”नैक जैसा कोई भी मूल्यांकन करने के लिए लेखा परीक्षकों को पहले से अपने आने की सूचना नहीं देनी होती है। उन्हें अचानक आना चाहिए ताकि शिक्षण संस्थानों की वास्तविक स्थिति पता चल सके।
प्रोफेसर आशुतोष ने कहा कि शिक्षण संस्थानों के गुणवत्ता मूल्यांकन के लिए जरूरी है कि विश्वविद्यालय और कॉलेज में इसके लिए एक आंतरिक सेल का गठन किया जाए जो कॉलेजों की समस्याओं के बारे में रिपोर्ट तैयार कर सौंपेंगे। इससे इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार के साथ ही शिक्षा की गुणवत्ता में भी सुधार होगी। हालांकि इसके लिए राज्य सरकार से वित्तीय मदद की जरूरत पड़ेगी जो लंबे समय से नहीं मिल रही।
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